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नीतीश सरकार ने जातीय जनगणना का डेटा जारी कर दिया है। तो वहीं अब बिहार के साथ साथ पूरे देश की राजनीति गर्मा गई है। देश का सबसे बड़ा सूबा यूपी भी इस मुद्दे से अछूता नहीं है या विपक्ष के साथ सत्तापक्ष में शामिल भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी दल भी जातीय जनगणना की मांग उठा रहे हैं।
ऐसे ही रोहिणी आयोग की रिपोर्ट लागू करने की चर्चाएं भी तेज हो गई है। कानाफूसी है कि केंद्र सरकार रोहिणी आयोग की सिफारिशों को लागू कर सकती है। भाजपा के कुछ समर्थकों का तर्क है कि यह संभावित रूप से लोकसभा इलेक्शनों के लिए गेमचेंजर हो सकता है। बीजेपी इसका इस्तेमाल विपक्ष के जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी की नैरेटिव के काट के तौर पर कर सकती है। साथ ही ओबीसी वर्ग की अति पिछड़ी जातियों के बीच अपने समर्थन को और मजबूत कर सकती है।
जातिगत सर्वे के बाद दूसरा सबसे बड़ा बदलाव संसद के विशेष सत्र से पहले भी पेश किए जाने के कयास लगाए जा रहे थे, मगर ऐसा नहीं हुआ। अब ऐसी चर्चाएं हैं। पैनल की रिपोर्ट अगर पेश की जाती है तो भारतीय जनता पार्टी की कोशिश इसके जरिए कोटे में कोटा लागू कर के ओबीसी वोट बैंक के बंटवारे की होगी, जिससे विपक्ष बिहार में 63 प्रतिशत के आंकड़े के साथ पेश कर रहा है। इस संवेदनशील रिपोर्ट को 2024 के इलेक्शन से पहले अगर पेश किया गया तो फिर ये हाल के सर्वे के बाद दूसरा बड़ा दांव होगा और समीकरण नये सिरे से तैयार करने की कोशिश की जाएगी।