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Up Kiran, Digital Desk: अंतरराष्ट्रीय राजनीति की दुनिया में कभी-कभी तारीफ़ भी बवाल खड़ा कर देती है, खासकर तब, जब वह तथ्यों से परे हो। कुछ घंटों पहले NATO चीफ ने प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करते हुए एक बड़ा बयान दिया, लेकिन अब कहानी में एक बड़ा ट्विस्ट आ गया है। भारत ने NATO प्रमुख के उस दावे को न सिर्फ़ खारिज कर दिया है, बल्कि उसे "लापरवाही भरा" (Careless claim) और "तथ्यात्मक रूप से गलत" (factually incorrect) बताकर एक कड़ा संदेश भी दिया है।

NATO चीफ ने आखिर ऐसा क्या कह दिया था जिस पर भारत हुआ नाराज़?

हुआ यह था कि NATO के मुखिया, मार्क रूट ने एक बयान में प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करते हुए यह दावा किया था कि उन्होंने 'हाल ही में' राष्ट्रपति पुतिन से फोन पर बात की और उन पर यूक्रेन युद्ध को लेकर दबाव बनाया। NATO चीफ ने इसे भारत की एक ज़िम्मेदार भूमिका के तौर पर पेश किया था।

भारत ने क्यों दिखाईं आँखें?

यह बयान सुनने में भले ही भारत की तारीफ़ जैसा लग रहा हो, लेकिन इसके आते ही दिल्ली में कूटनीतिक स्तर पर हलचल मच गई। भारत ने इस पर बहुत ही सख़्त और साफ़ प्रतिक्रिया दी है। भारतीय सरकारी सूत्रों ने दो टूक शब्दों में कहा:

"NATO प्रमुख का यह दावा पूरी तरह से गलत है। ऐसी कोई बातचीत हाल-फिलहाल में हुई ही नहीं है।"

यह सिर्फ़ एक खंडन नहीं, एक कड़ा संदेश है

भारत का यह कड़ा रुख सिर्फ़ एक बयान का खंडन नहीं है। इसके गहरे कूटनीतिक मायने हैं:

हमारी बात, हमारी मर्ज़ी: भारत ने दुनिया को यह साफ़ संदेश दिया है कि दो देशों के राष्ट्राध्यक्षों के बीच क्या बात होती है, यह बेहद गोपनीय होता है। कोई तीसरा देश या संगठन इस पर अपनी मर्ज़ी से टिप्पणी नहीं कर सकता।

स्वतंत्र विदेश नीति: भारत ने यह फिर से साबित कर दिया है कि वह अपनी विदेश नीति किसी के दबाव या प्रभाव में तय नहीं करता। हम किससे क्या बात करेंगे, यह हमारा अपना फैसला होगा।

तथ्यों का सम्मान करें: "Careless claim" (लापरवाही भरा दावा) जैसे शब्दों का इस्तेमाल करके, भारत ਨੇ NATO चीफ को यह भी बताया है कि इतने बड़े पद पर बैठकर बिना तथ्यों की जांच किए बोलना सही नहीं है।

भारतीय सूत्रों ने यह भी साफ़ किया कि पीएम मोदी और राष्ट्रपति पुतिन के बीच आखिरी बातचीत कई हफ्ते पहले हुई थी और उसका मुख्य विषय द्विपक्षीय संबंध था, न कि सिर्फ यूक्रेन युद्ध।

भारत ने इस एक बयान से पूरी दुनिया को यह स्पष्ट कर दिया  कि वह अपने कूटनीतिक मामलों में किसी भी तरह की बाहरी बयानबाज़ी को बर्दाश्त नहीं करेगा, चाहे वह तारीफ़ के लिबास में ही क्यों न हो।