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Up Kiran, Digital Desk: पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए अटैक में 26 लोगों की हत्या करने वाले दहशतगर्दों की तलाश में दक्षिण कश्मीर के घने जंगलों में सुरक्षा बलों द्वारा बड़ा सर्च ऑपरेशन जारी है। 11 दिनों के बाद भी आतंकवादी फरार हैं क्योंकि दक्षिण कश्मीर का इलाका दुर्गम और खतरनाक है।
मीडिया रिपोर्ट अनुसार इस क्षेत्र में घने जंगल और खड़ी पहाड़ियां हैं जो दहशतगर्दों के लिए प्राकृतिक छलावरण का काम करते हैं जिससे सुरक्षा बलों को उनका पीछा करने में कठिनाई होती है। पहलगाम के पास के पहाड़ माउंट एवरेस्ट की लगभग आधी ऊंचाई तक हैं और ऊबड़-खाबड़ पर्वत श्रृंखलाएं और घने जंगल फैले हुए हैं।
सुरक्षा बलों की राह में आ रही रुकावटें
बैसरन मेडो तक पहुंचने के रास्ते घुमावदार नदियों घने जंगलों और कीचड़ भरे हैं जिनमें गाड़ियां नहीं जा सकतीं। पूर्व की ओर पर्वतमालाएं तेजी से ऊंची होती जाती हैं जिससे यह क्षेत्र और दुर्गम हो जाता है। सुरक्षा बल इन इलाकों में बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान चला रहे हैं।
दहशतगर्दों ने जम्मू के कठुआ से दक्षिण कश्मीर तक फैले घने जंगलों का इस्तेमाल छिपने और आवागमन के लिए किया है। पहाड़ी जंगलों में कठोर मौसम भी चुनौती बढ़ाता है जहां रात में तापमान तेजी से गिरता है। किश्तवाड़ रेंज जो पहलगाम की ऊंची चोटियों से जुड़ती है में इस साल कम बर्फबारी हुई है जिससे तलाशी का क्षेत्र और बढ़ गया है और यह जम्मू की ओर भागने का रास्ता भी दे सकती है हालांकि माना जा रहा है कि वे अभी भी दक्षिण कश्मीर में हैं।
इस क्षेत्र के घने शंकुधारी वन जिनमें 100 से 328 फीट ऊंचे पेड़ हैं और जिनके बीच 10 से 20 मीटर की दूरी होती है विजिबिलिटी को 30-35 मीटर तक और कुछ क्षेत्रों में 10 मीटर से भी कम कर देते हैं।
भारतीय सुरक्षा अधिकारियों का मानना है कि पहलगाम के आतंकवादी इस दुर्गम इलाके के लिए प्रशिक्षित हैं और उन्होंने युद्ध का प्रशिक्षण भी लिया है। माना जाता है कि उनमें से एक हाशिम मूसा लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा एक पूर्व पाकिस्तानी पैरा कमांडो है जो सैन्य प्रशिक्षण और सामरिक विशेषज्ञता में माहिर है। खुफिया जानकारी के अनुसार यह हमला सावधानीपूर्वक योजनाबद्ध तरीके से किया गया था और दहशतगर्दों ने दो महीने पहले सांबा-कठुआ कॉरिडोर से घुसपैठ की थी।
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