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आतंकवाद केवल सीमा पर गोलीबारी या आतंकी हमलों तक सीमित नहीं है, यह आम लोगों की जिंदगियों को किस हद तक प्रभावित करता है, इसका ताजा और भावुक उदाहरण है पाकिस्तान के कराची का एक 16 वर्षीय दिव्यांग किशोर अयान।

दिल्ली में इलाज करवा रहे इस किशोर को पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत से वापस भेज दिया गया, जिससे उसका इलाज अधूरा रह गया। अब अयान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भावुक अपील की है कि उसकी भारतीय पासपोर्टधारी मां को कराची लौटने की अनुमति दी जाए।

दिल्ली में चल रहा था इलाज, अचानक लौटना पड़ा

अयान एक गंभीर रीढ़ की हड्डी की चोट का इलाज नई दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अस्पताल में डॉ. सुधीर कुमार की निगरानी में करवा रहा था।

पिछले साल एक गलतफहमी के कारण अयान को पुलिस की गोली लग गई थी, जिससे उसका निचला शरीर लकवाग्रस्त हो गया।

अयान अपनी मां, पिता, भाई, चाचा और चचेरे भाई के साथ इलाज के लिए भारत आया था।

लेकिन 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने सुरक्षा कारणों से उन्हें वापस भेजने का निर्णय लिया।

पाकिस्तान लौटते वक्त मां और बहन को भारत में ही रोक लिया गया

अयान की मां और बहन भारतीय पासपोर्ट धारक हैं, इसलिए उन्हें भारत में ही रोक लिया गया।

जबकि बाकी परिवार को अटारी-वाघा बॉर्डर के जरिए पाकिस्तान भेज दिया गया।

इससे अयान की देखरेख कर रहीं उसकी मां अब भी भारत में हैं, जबकि वह पाकिस्तान लौट चुका है।

कराची लौटते ही मीडिया के सामने भावुक हुआ अयान

जब अयान को कराची कैंट स्टेशन पर ट्रेन से स्ट्रेचर पर उतारा गया, तो उसकी आंखों में भावनाओं का सैलाब था।

"मैं इंद्रप्रस्थ अस्पताल में बेहतर इलाज करवा रहा था, लेकिन अचानक हमें भारत छोड़ने को कहा गया। मेरा इलाज अधूरा रह गया।"

उसने अपील करते हुए कहा कि,

"प्रधानमंत्री मोदी जी से मेरी गुजारिश है कि मेरी मां को भी कराची लौटने की इजाजत दी जाए, ताकि वह मेरी देखभाल कर सकें।"

क्या बोले अयान के पिता?

अयान के पिता हलीम ने कहा:

"मेरी पत्नी भारत की नागरिक हैं, लेकिन शादी के बाद वह मेरे साथ कराची आ गई थीं। हम दिल्ली में अपने रिश्तेदारों के पास रहकर इलाज करवा रहे थे। वीजा वैध होने के बावजूद उन्हें पाकिस्तान आने की इजाजत नहीं दी गई।"

उन्होंने कहा कि,

"हम भारत गए थे एक उम्मीद लेकर, लेकिन आतंकवाद ने हमारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।"

इलाज अधूरा, सवाल अनसुलझे

अयान का इलाज अभी अधूरा है और उसकी हालत स्थिर नहीं है।

सवाल यह भी उठता है कि क्या इलाज को इस तरह रोक देना उचित था?

क्या एक मरीज को उसकी मां से अलग करना इंसानियत के दायरे में आता है?

एक अपील, जो सिर्फ राजनीतिक नहीं, मानवीय भी है

इस पूरी घटना ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आतंकवाद का असर सिर्फ सीमा या सेना तक सीमित नहीं होता, यह आम इंसानों की जिंदगी में जख्म छोड़ जाता है।

अयान की अपील सिर्फ एक बेटे की पुकार नहीं है, यह इंसानियत से एक सवाल भी है — क्या बीमारी और इलाज की कोई सीमा होनी चाहिए?

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