
हिंदू देवी-देवताओं में #विश्वकर्मा अकेले ऐसे देवता हैं जिनका जन्मदिवस हमेशा #अंग्रेजी_कलेंडर (ग्रेगोरियन कैलेंडर, जो वर्तमान में पूरी दुनिया में प्रचलित हैं) के हिसाब से केवल एक निर्धारित तिथि 17 सितंबर को ही मनाया जाता हैं।
वरना किसी देवी-देवता का जन्म #कृष्ण_शुक्ल पक्ष के महीने में तो किसी का #आश्विन_शुक्ल पक्ष के महीने में आता हैं। किसी का #अमावस्या को तो किसी का #पूर्णिमा को आता हैं।
#हिंदू_पंचांग के अनुसार, हिंदू देवी-देवताओं की जन्म जयंती या उत्सव #चंद्र_कैलेंडर (विक्रम संवत) की तिथियों के अनुसार तय होते हैं। ये तिथियां #सौर_कैलेंडर (अंग्रेजी ग्रेगोरियन कैलेंडर) के हिसाब से हर साल बदलती हैं, क्योंकि हिंदू पंचांग #चंद्र_मास (चंद्रमा की गतिविधि के अनुसार) पर आधारित है।
हिंदू पंचांग चंद्र मास पर आधारित है, इसलिए देवी-देवताओं के #जन्म (जयंती) व #त्योहारों की तिथियां हर साल बदलती रहती हैं।
अगर इतिहास में जाकर देखते हैं तब भी किसी धर्म ग्रंथ में विश्वकर्मा जी का नाम नहीं मिलता। या यूँ कहे कि 19 वीं शताब्दी से पहले तो कुछ भी नहीं मिलता।
हिंदुओं के भगवान #विश्वकर्मा वास्तव में दक्षिण भारत के महान समाज सुधारक #पेरियार_जी हैं।
मनुवादियों द्वारा उत्तर भारत में पेरियार जी की बढ़ती #लोकप्रियता का #मुकाबला करने व इसे #रोकने के लिए ही 17 सितंबर को #विश्वकर्मा_दिवस घोषित किया गया हैं।
इसके लिए रामासामी जी की शक्ल की हूबहू नकल करके पेरियार के जैसे ही सफेद व लंबी दाढ़ी-मूंछ वाले विश्वकर्मा का काल्पनिक पात्र गढ़ा गया।
80 के दशक के अंत में #उत्तर_भारत के सामाजिक सुधारक #ललई_सिंह_यादव_जी ने #दक्षिण_भारत के समाज सुधारक #पेरियार_रामासामी_जी की "#रामायण_ए_ट्रू_रीडिंग" किताब का हिंदी में अनुवाद किया और इसे "#सच्ची_रामायण" नाम से #उत्तर_भारत में पुनः प्रकाशित किया।
#नासुधि_यादव, #बेजान_राजभर और #बलराम_मौर्य जैसे जाति विरोधी सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उस पुस्तक के आधार पर उत्तर भारत में नुक्कड़-नाटकों की शुरुआत की।
इसलिए, उत्तर भारत में #पेरियार की बढ़ती लोकप्रियता को रोकने के लिए ब्राह्मणों ने पेरियार जी के जन्मदिन वाले दिन यानी 17 सितंबर पर काल्पनिक विश्वकर्मा दिवस मनाने की शुरुआत की।
यह बिल्कुल ठीक वैसे ही किया गया जैसे उन्होंने #महाराष्ट्र के महान समाज सुधारक राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले जी के सत्यशोधक जलसा (जुलूस) को रोकने के लिए 1893 ई० में महाराष्ट्र में 10 दिन की गणेश पूजा मनाना शुरू किया था।