
उत्तराखंड के अंकिता भंडारी हत्याकांड ने न केवल एक निर्दोष युवती की जान ली, बल्कि इसने राज्य की राजनीतिक संरचना और सत्ता के गलियारों में व्याप्त संरक्षण की परतों को भी उजागर किया।
मुख्य आरोपी पुलकित आर्य के पिता विनोद आर्य और भाई अंकित आर्य भाजपा से जुड़े रहे हैं। विनोद आर्य ने भाजपा में अपनी पहचान बनाई और राज्य मंत्री के दर्जे तक पहुंचे। उनके बड़े बेटे अंकित को राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया था। हालांकि, इस घटना के बाद भाजपा ने दोनों को पार्टी से निष्कासित कर दिया और अंकित को आयोग के पद से हटा दिया ।
विनोद आर्य का आयुर्वेद व्यवसाय भी राजनीतिक पहुंच का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। उन्होंने इस व्यवसाय का इस्तेमाल अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने के लिए किया। उनकी पहचान हरिद्वार के आर्य नगर में स्थित उनके घर से होती थी, जो भाजपा के झंडों और कारों से सजा रहता था ।
इस मामले में एसआईटी ने 100 से अधिक गवाहों और वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर आरोपियों को दोषी ठहराया। चंद्रमा की स्थिति का विश्लेषण भी जांच में सहायक सिद्ध हुआ, जिससे घटना के समय और स्थान की पुष्टि हुई ।
हालांकि न्यायालय ने तीनों आरोपियों को उम्रभर की सजा सुनाई, अंकिता के माता-पिता इस फैसले से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं। वे दोषियों को मृत्युदंड की सजा की उम्मीद कर रहे थे, ताकि उनके बेटी को वास्तविक न्याय मिल सके ।
यह मामला यह दर्शाता है कि सत्ता और संरक्षण के बावजूद, सख्त जांच और न्यायिक प्रक्रिया से अपराधियों को सजा मिल सकती है।
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