
दुबई: अमेरिका द्वारा ईरान पर उसके परमाणु कार्यक्रम को लेकर लगातार बनाए जा रहे दबाव के बीच अब एक नई कूटनीतिक पहल की शुरुआत होती दिख रही है। ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने बड़ा बयान देते हुए कहा है कि वे ओमान में अमेरिकी प्रतिनिधि से पहली अप्रत्यक्ष वार्ता के लिए तैयार हैं। यह पहल ट्रंप प्रशासन के कार्यकाल में हो रही है, और इसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव को कम करना बताया जा रहा है।
ओमान में होगी अप्रत्यक्ष बातचीत
ईरान के विदेश मंत्री अराघची ने अल्जीरिया की यात्रा के दौरान ईरानी सरकारी टेलीविजन को बताया कि यह वार्ता प्रत्यक्ष नहीं बल्कि अप्रत्यक्ष होगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि दोनों पक्षों के बीच संवाद में ओमान की भूमिका मध्यस्थ की होगी। उन्होंने कहा, “हमारा लक्ष्य प्रतिबंधों को हटाना और ईरानी नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना है। यदि अमेरिका इस प्रक्रिया के प्रति गंभीर है, तो यह संभव है।”
ईरान की प्रत्यक्ष वार्ता में कोई रुचि नहीं
अराघची ने यह भी कहा कि फिलहाल उनकी प्राथमिकता अप्रत्यक्ष वार्ता की है और प्रत्यक्ष बातचीत की कोई योजना नहीं बनाई गई है। उन्होंने साफ किया कि ईरान इस समय किसी तरह की प्रत्यक्ष बातचीत को लेकर इच्छुक नहीं है, लेकिन अगर परिस्थितियां बदलती हैं, तो उस पर विचार किया जा सकता है।
ट्रंप ने प्रत्यक्ष बातचीत की जताई थी संभावना
इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यह संकेत दिया था कि अमेरिका और ईरान के बीच प्रत्यक्ष वार्ता हो सकती है। उन्होंने कहा था कि बातचीत की प्रक्रिया शुरू होने वाली है और यह दोनों देशों के लिए एक अहम मोड़ साबित हो सकती है। हालांकि, उन्होंने साथ ही यह भी चेतावनी दी कि अगर बातचीत विफल होती है, तो ईरान को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
‘बातचीत असफल रही तो खतरा है’: ट्रंप
ट्रंप ने एक सवाल के जवाब में कहा, “अगर यह बातचीत सफल नहीं होती, तो मुझे लगता है कि ईरान को काफी बड़ा खतरा हो सकता है। मैं इसे पसंद नहीं करता, लेकिन यही सच्चाई है।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि वह बातचीत के पक्ष में हैं, लेकिन ईरान को अपनी नीतियों में बदलाव दिखाना होगा।
परमाणु कार्यक्रम को लेकर गहराता तनाव
ईरान और अमेरिका के बीच यह टकराव उस समय और बढ़ गया जब अमेरिका और इज़राइल ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर सैन्य कार्रवाई की चेतावनी दी थी। इसके जवाब में तेहरान ने भी पलटवार करने की बात कही है। ऐसे में यह वार्ता दोनों पक्षों के लिए एक महत्वपूर्ण मौका मानी जा रही है जिससे भविष्य में किसी बड़े टकराव से बचा जा सके।
अब सभी की नजरें इस प्रस्तावित बातचीत पर टिकी हैं और यह देखना दिलचस्प होगा कि कूटनीति इस बार युद्ध की जगह ले पाती है या नहीं।