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Up Kiran, Digital Desk: यह बात हम सभी जानते हैं कि अगर किसी को कोई भी गंभीर बीमारी होती है, तो उसे अच्छी दवाइयों और इलाज की ज़रूरत होती है। लेकिन जब बात मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) की आती है, तो सिर्फ दवाई काम नहीं करती। अगर किसी मानसिक बीमारी (Mental Illness) से जूझ रहे व्यक्ति को परिवार का सहयोग (Family Support) न मिले, तो उसका अकेलेपन का अंधेरा और भी गहरा हो जाता है। यही कारण है कि अब देश के स्वास्थ्य देखभाल (Health Care) संस्थानों ने इस दिशा में बहुत ज़ोर देना शुरू कर दिया है।

खासकर आंध्र प्रदेश जैसे राज्य में, अब मानसिक रोगों से जुड़ी देखभाल (Care) और उपचार (Treatment) के तरीकों को बदलने पर बहुत ज़ोर दिया जा रहा है, ताकि रोगी जल्दी ठीक होकर वापस अपनी सामान्य ज़िंदगी में लौट सकें।

इलाज सिर्फ दवा से नहीं, परिवार से पूरा होता है

हमारे मनोवैज्ञानिक (Psychologist) लगातार यह बात समझाते हैं कि परिवार सिर्फ एक 'विज़िटर' या मरीज़ का खर्च उठाने वाला माध्यम नहीं है, बल्कि वह खुद उस उपचार प्रक्रिया का एक सबसे अहम हिस्सा है। जब परिवार के सदस्य:

बीमारी को स्वीकारते हैं: रोगी को डाँटने या उन्हें जज करने के बजाय जब परिवार उनकी समस्या को स्वीकार करता है, तो उनका आधा मानसिक तनाव खुद ही कम हो जाता है।

सकारात्मक माहौल देते हैं: घर का माहौल शांत, सकारात्मक और प्यार से भरा हो, तो यह उस मानसिक पेशेंट्स (Mental Patients) की रिकवरी में किसी बूस्टर डोज की तरह काम करता है।

इलाज में मदद करते हैं: समय पर दवाई देना, डॉक्टर की सलाह याद दिलाना और उन्हें दोबारा सामान्य जिंदगी की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करना—यह सब परिवार का सहयोग ही कर सकता है।

यही कारण है कि आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों के संस्थानों से अब साफ तौर पर यह अपेक्षा की जा रही है कि वे मानसिक स्वास्थ्य के पेशेंट्स के परिजनों को भी काउंसिलिंग (Counselling) दें, ताकि उन्हें यह पता चले कि उन्हें सही समय पर और सही तरीके से किस तरह की देखभाल की ज़रूरत है।

हमारा सामाजिक समर्थन (Social Support) जितना मजबूत होगा, उतना ही जल्दी कोई भी मानसिक बीमारी से बाहर आ सकता है। डिप्रेशन हो या कोई और मानसिक विकार, घर का अटूट बंधन ही रोगी को सबसे पहले बाहर निकालता है।