img

मंगलवार की दोपहर जब देश का एक हिस्सा आम दिनचर्या में व्यस्त था। तभी घाटी की खूबसूरत वादियों में मातम पसर गया। पहलगाम के बैसरन घाटी- जिसे मिनी स्विट्जरलैंड भी कहा जाता है। वहां हुए आतंकी हमले में 26 निर्दोष लोगों की जान चली गई। हमले के पीछे की कहानी जितनी दर्दनाक है, उससे भी ज्यादा चिंता इस बात की है कि ये आतंकी आखिर दो हफ्ते तक देश में कैसे घूमते रहे और सुरक्षा एजेंसियों को इसकी भनक तक नहीं लगी।

हमले से पहले क्या हुआ?

रिपोर्ट्स के मुताबिक, आतंकी पीर पंजाल की पहाड़ियों से होते हुए वधावन रूट से पहलगाम पहुंचे। यह वही इलाका है जहाँ हर साल हजारों श्रद्धालु अमरनाथ यात्रा के लिए आते हैं। यहां सुरक्षा हमेशा कड़ी मानी जाती है। इसके बावजूद दो हफ्ते तक आतंकियों का देश में रहना, मूवमेंट करना और आखिरकार हमला कर देना- ये सब कुछ सुरक्षा तंत्र की विफलता की तरफ इशारा करता है।

पर्यटक बने शिकार

बैसरन घाटी की खूबसूरती हर किसी को अपनी तरफ खींचती है। हमले के दिन भी बड़ी संख्या में पर्यटक वहां पहुंचे थे। शायद ही किसी ने सोचा होगा कि चंद पलों में उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल जाएगी। चश्मदीदों के मुताबिक, आतंकियों ने सबसे पहले लोगों से उनका धर्म पूछा और फिर उन्हें कलमा पढ़ने को कहा। जो लोग ऐसा नहीं कर पाए, उन्हें बेरहमी से गोली मार दी गई। इस हैवानियत ने एक बार फिर दिखा दिया कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, उसका सिर्फ एक मकसद होता है- डर फैलाना।

सुरक्षा एजेंसियों की चूक

सबसे बड़ा सवाल यही है कि जब इनपुट था कि घुसपैठ की कोशिश हो रही है, तो फिर ये आतंकी देश में दाखिल कैसे हो गए? यदि दो हफ्ते पहले ही भारत में घुसपैठ हुई थी, तो सुरक्षा एजेंसियों को इसकी भनक क्यों नहीं लगी? क्या हमें अपनी इंटेलिजेंस नेटवर्क की समीक्षा करने की ज़रूरत है? क्या LOC पर गश्त और निगरानी में चूक हुई?

एनआईए की टीम हमले के तुरंत बाद श्रीनगर पहुंची, मगर अब सिर्फ जाँच ही हो सकती है। जो जानें चली गईं उन्हें वापस नहीं लाया जा सकता।