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Up Kiran, Digital Desk: देश की संसद में आगामी सप्ताह का माहौल बेहद गर्म रहने वाला है, क्योंकि ऑपरेशन सिंदूर और पहलगाम हमले पर सरकार को जनता की सुरक्षा और जवाबदेही के सवालों का सामना करना पड़ेगा। लोकसभा में इस मुद्दे पर 28 जुलाई और राज्यसभा में 29 जुलाई को चर्चा होगी। सूत्रों के अनुसार, लोकसभा को 16 घंटे और राज्यसभा को 9 घंटे का समय इस बहुप्रतीक्षित बहस के लिए दिया गया है।

हालिया बैठकों में राज्यसभा की बिजनेस एडवाइजरी कमिटी ने चर्चा के समय को लेकर फैसला लिया है। विपक्षी दलों की तरफ से यह मांग प्रमुखता से उठ रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को स्वयं सदन में उपस्थित रहकर अपनी बात रखनी चाहिए, ताकि देश को पूरी स्थिति की जानकारी मिल सके।

सुरक्षा नहीं, अब पारदर्शिता की मांग

जहां सरकार ऑपरेशन सिंदूर को एक बड़ी सैन्य उपलब्धि मान रही है, वहीं विपक्ष इस मुद्दे को जनहित और लोकतांत्रिक जवाबदेही के नजरिए से देख रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत-पाकिस्तान के बीच कथित संघर्षविराम में अपनी भूमिका का दावा किए जाने के बाद मामला और अधिक पेचीदा हो गया है। विपक्ष इसे संप्रभुता और विदेश नीति से जुड़ा गंभीर विषय मानते हुए प्रधानमंत्री से विस्तार से स्थिति स्पष्ट करने की मांग कर रहा है।

संसद में गतिरोध, जनमानस में असमंजस

बिहार सहित कई राज्यों में विपक्षी नेताओं द्वारा ऑपरेशन सिंदूर और एसआईआर की पारदर्शिता को लेकर सवाल उठाए गए हैं। यही कारण है कि संसद के मानसून सत्र के शुरुआती तीन दिन लगातार स्थगन का शिकार हुए। जनता के बीच भी यह चर्चा आम हो गई है कि सुरक्षा से जुड़े इतने बड़े ऑपरेशन के बारे में आधिकारिक जानकारी क्यों नहीं दी जा रही।

ऑपरेशन सिंदूर: सैन्य कार्रवाई से शांति तक

22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम इलाके में हुए आतंकी हमले के जवाब में भारत ने 7 मई से ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की शुरुआत की। इस सैन्य कार्रवाई में जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिज्बुल मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठनों से जुड़े 100 से ज्यादा आतंकियों को मार गिराया गया।

इसके जवाब में पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा पर भारी गोलीबारी की और ड्रोन हमलों का प्रयास किया। भारत ने भी तुरंत और संगठित प्रतिक्रिया देते हुए 11 पाकिस्तानी सैन्य और हवाई ठिकानों पर हमले किए, जिनमें उनकी रडार और संचार प्रणालियां क्षतिग्रस्त की गईं।

 

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