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Up Kiran, Digital Desk: राजस्थान में निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम के तहत शैक्षणिक सत्र 2025-26 की प्रवेश प्रक्रिया एक बार फिर भारी विवाद और असमंजस का शिकार हो गई है। निजी विद्यालयों और शिक्षा विभाग के बीच फीस पुनर्भरण को लेकर खिंची तलवारों के चलते करीब 1.5 लाख बच्चों का भविष्य फिलहाल अधर में लटक गया है। प्रवेश के पहले चरण में चयनित छात्र-छात्राएं स्कूलों से प्रवेश पाने के लिए भटक रहे हैं, जबकि स्कूल विभागीय आदेशों और उच्च न्यायालय के फैसले की आड़ में दाखिला देने से इनकार कर रहे हैं।

अदालत के फैसले ने बढ़ाई उलझन

इस पूरे विवाद की शुरुआत राजस्थान हाईकोर्ट के हालिया फैसले से हुई, जिसमें न्यायालय ने स्पष्ट किया कि आरटीई के तहत दाखिला "एंट्री लेवल क्लास" में ही दिया जाए। इस पर निजी स्कूलों ने तर्क दिया कि उनकी एंट्री लेवल क्लास ‘नर्सरी’ है, इसलिए वे उसी कक्षा में आरटीई प्रवेश देने को बाध्य हैं।

वहीं, शिक्षा विभाग का दावा है कि नर्सरी पूर्व-प्राथमिक शिक्षा श्रेणी में आती है, जबकि आरटीई अधिनियम के तहत प्रथम कक्षा तक ही प्रावधान लागू होता है। शिक्षा सचिव कृष्ण कुणाल ने मीडिया को बताया कि कोर्ट के आदेश का गलत अर्थ निकाला गया है और पहली कक्षा में प्रवेश की प्रक्रिया बाधित नहीं होनी चाहिए। विभाग इस संबंध में जल्द ही स्पष्टीकरण आदेश जारी करेगा।

लॉटरी से चयनित बच्चों को नहीं मिल रहा प्रवेश

शिक्षा विभाग ने अप्रैल में राज्य के 34,799 निजी स्कूलों में आरटीई के तहत प्रवेश के लिए ऑनलाइन लॉटरी प्रक्रिया पूरी की थी। इसमें तीन लाख से अधिक बच्चों का चयन हुआ, जिनमें से करीब 1.5 लाख विद्यार्थी पहली कक्षा के लिए चयनित हुएशिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने दावा किया था कि इस बार प्रक्रिया पारदर्शी और विवादमुक्त होगी। विभाग ने एक पोर्टल भी लॉन्च किया था, जहां शिकायतें दर्ज कराई जा सकती हैं।

लेकिन जमीनी हकीकत इसके उलट है। हजारों अभिभावक शिकायत कर रहे हैं कि स्कूलों में प्रवेश देने से साफ इनकार किया जा रहा है। अभिभावकों को न तो विभाग से संतोषजनक जवाब मिल रहा है और न ही स्कूल प्रशासन से सहयोग। इससे बच्चों की पढ़ाई का अधिकार और समय दोनों संकट में हैं।

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