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Up Kiran, Digital Desk: सीबीआई के उच्च पदों पर होने वाली नियुक्तियां अक्सर आम जनता से दूर दिखाई देती हैं, लेकिन जब ऐसे अफसर की बात हो जो ज़मीन से जुड़ा हो और जनता के बीच भरोसे का प्रतीक रहा हो, तो उसका असर व्यापक होता है। झारखंड कैडर के 2005 बैच के आईपीएस अधिकारी कुलदीप द्विवेदी को जब केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) का संयुक्त निदेशक बनाया गया, तो यह सिर्फ एक प्रशासनिक निर्णय नहीं था, बल्कि एक भरोसेमंद नेतृत्व की ओर बढ़ता कदम था।
जनसेवा में दृढ़ विश्वास रखने वाले अफसर
उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले द्विवेदी ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद सिविल सेवा में कदम रखा और झारखंड कैडर में शामिल हुए। शुरुआती दौर से ही उन्होंने नक्सल प्रभावित इलाकों में काम कर लोगों की सुरक्षा और विश्वास को प्राथमिकता दी। उनके द्वारा नेतृत्व किए गए अभियानों ने न केवल माओवादियों की गतिविधियों को कम किया बल्कि आम नागरिकों में सुरक्षा की भावना भी मजबूत की।
रांची में बदलाव की मिसाल बने
रांची जैसे चुनौतीपूर्ण जिले में वरिष्ठ एसपी रहते हुए द्विवेदी ने न सिर्फ अपराध नियंत्रण पर ध्यान दिया, बल्कि ट्रैफिक और शहरी सुरक्षा के क्षेत्र में भी नवाचार किए। उनकी पहल से राजधानी में कई सकारात्मक बदलाव आए, जिन्हें आम नागरिकों ने न सिर्फ महसूस किया, बल्कि सराहा भी।
तकनीक और संवाद को policing का हिस्सा बनाया
द्विवेदी का मानना रहा है कि पुलिसिंग केवल कानून लागू करने तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि समाज से संवाद और तकनीक का समावेश इसमें ज़रूरी है। उन्होंने पुलिस और जनता के बीच की दूरी को कम करने के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए। इन प्रयासों के चलते वे केवल एक सख्त अफसर नहीं, बल्कि संवेदनशील और समझदार नेतृत्वकर्ता के रूप में उभरे।
CBI में नियुक्ति के क्या मायने हैं?
कुलदीप द्विवेदी की यह नई भूमिका न केवल जांच एजेंसी के भीतर एक सशक्त और अनुशासित नेतृत्व को मजबूत करेगी, बल्कि यह संदेश भी देती है कि प्रशासन अब ऐसे अधिकारियों को तरजीह दे रहा है जो जमीन से जुड़कर काम करने में विश्वास रखते हैं। उनकी अब तक की कार्यशैली को देखते हुए, यह उम्मीद की जा रही है कि वे CBI में पारदर्शिता और जनहित से जुड़ी जांच प्रक्रिया को और अधिक मजबूती देंगे।
संक्षिप्त जानकारी:
नाम: कुलदीप द्विवेदी
कैडर: झारखंड
बैच: 2005 (IPS)
मूल निवास: उत्तर प्रदेश
शैक्षणिक पृष्ठभूमि: इंजीनियरिंग स्नातक
उनकी नियुक्ति से साफ है कि अब जांच एजेंसियों में ऐसे अफसरों की ज़रूरत है जो न सिर्फ नियम जानते हैं, बल्कि मानवीय दृष्टिकोण से भी निर्णय लेने में सक्षम हैं।
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