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Up Kiran, Digital Desk: उत्तराखंड के धारी (नैनीताल) निवासी 62 वर्षीय गोपाल सिंह बोरा, जो लोक निर्माण विभाग से वर्कचार्ज कर्मचारी के रूप में रिटायर हुए थे, पेंशन के लिए संघर्ष करते हुए अपनी जान गंवा बैठे। यह दुखद घटना 14 अक्टूबर को उस वक्त घटी, जब गोपाल सिंह देहरादून के यमुना कॉलोनी स्थित मुख्य अभियंता कार्यालय में चल रहे पेंशनर्स के धरने में भाग लेने के लिए आए थे। धरने में शामिल होते समय अचानक उनकी तबीयत बिगड़ी और बाद में उन्हें उनके बेटे ने लेकर घर वापसी की। हल्द्वानी के चिकित्सकों ने उन्हें लकवे का अटैक होने की बात बताई थी। इसके बाद बाजपुर में एक डॉक्टर से इलाज कराकर वे घर लौटे, जहां उनका निधन हो गया।

मंगलवार को जब धरने में शामिल अन्य सेवानिवृत्त कर्मचारियों को गोपाल सिंह की मौत की खबर मिली, तो वहां उपस्थित सभी लोग स्तब्ध रह गए। सिर्फ दस दिन पहले ही, 3 अक्टूबर को, वह अपने साथी कर्मचारियों के साथ धरने में भाग ले रहे थे। अचानक बिगड़ी तबीयत के कारण उनके बेटे खीम सिंह को देहरादून बुलाया गया था। खीम सिंह ने बताया कि उनके पिता लगातार पेंशन के मुद्दे पर आंदोलन में शामिल होने की जिद कर रहे थे।

इलाज के लिए नहीं था पर्याप्त पैसा

गोपाल सिंह के बेटे खीम सिंह ने बताया कि उनके पिता को हल्द्वानी और फिर बाजपुर में इलाज करवाने के बावजूद उनकी हालत बिगड़ती चली गई। परिवार के पास इलाज के लिए पर्याप्त पैसे नहीं थे। यही कारण था कि उन्होंने उन्हें दवाइयां लेकर अपने पैतृक गांव धारी (नैनीताल) स्थित च्यूड़ीगाड़ में लाकर रखा। खीम सिंह का कहना था, "हमारा परिवार काश्ताकारी से चलता है, और जब तक पिता की नौकरी थी, तब तक घर की स्थिति ठीक थी। लेकिन रिटायर होने के बाद से परिस्थितियां बिगड़ गईं। अब पेंशन की उम्मीद में पिता भी हमें छोड़कर चले गए।"

सरकार पर अनदेखी का आरोप

इस मामले में उत्तराखंड विद्युत संविदा कर्मचारी संगठन के प्रदेश महामंत्री मनोज पंत ने कहा कि राज्य सरकार जीवनभर काम करने वाले कर्मचारियों को लावारिस छोड़ देती है। उन्हें अपनी पेंशन के अधिकार के लिए संघर्ष करना मजबूरी बन गया है। वहीं, गर्वनमेंट पेंशनर्स वेल्फेयर ऑर्गनाइजेशन के प्रांतीय कार्यकारिणी सदस्य रमेश चंद्र पांडे ने इस घटना पर दुख जताते हुए कहा कि गोपाल सिंह बोरा के निधन से यह स्पष्ट हो गया है कि राज्य सरकार सेवानिवृत्त कर्मचारियों के प्रति संवेदनहीन है और उन्हें उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है।