
22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में जो कुछ हुआ, वह केवल एक आतंकी हमला नहीं था—यह पूरे भारत की आत्मा को झकझोर देने वाली त्रासदी थी। बाइसरण घाटी में आतंकियों ने निर्दोष पर्यटकों को निशाना बनाकर न केवल जान ली, बल्कि इंसानियत को शर्मसार कर दिया।
हमले की सबसे दर्दनाक बात यह थी कि आतंकियों ने पहचान पूछकर लोगों को मारा। किसी से कलमा पढ़ने को कहा गया, किसी की पैंट उतरवाकर उनका धर्म देखा गया। एक-एक की पहचान तय कर जान ली गई। यह सिर्फ एक आतंकी हमला नहीं था, यह एक सुनियोजित नरसंहार जैसा था।
इस दिल दहला देने वाली घटना में कुल 26 लोगों की जान चली गई, और दर्जनों घायल हुए। अधिकांश पीड़ित पर्यटक थे—वे लोग जो घाटी की खूबसूरती देखने आए थे, लेकिन उनकी ज़िंदगी मौत की घाटी में समा गई।
देशभर में इस हमले को लेकर उबाल है। सोशल मीडिया, न्यूज़ चैनल, और जनता—हर जगह गुस्सा है, सवाल है, और कार्रवाई की मांग है। सभी की जुबां पर एक ही सवाल है—आख़िर कब तक निर्दोष लोग आतंक का शिकार बनते रहेंगे?
आतंकी हमले के बाद राजनीति में उबाल: रॉबर्ट वाड्रा का विवादित बयान
घटना के कुछ ही दिनों बाद कांग्रेस नेता रॉबर्ट वाड्रा ने एक ऐसा बयान दिया जिसने आग में घी डालने का काम किया। उन्होंने कहा कि भारत में मुसलमानों के साथ होने वाले कथित दुर्व्यवहार की वजह से ही इस तरह के आतंकी हमले होते हैं। यह बात उन्होंने न केवल राष्ट्रीय मंच पर कही, बल्कि आतंक के लिए एक प्रकार से "औचित्य" देने की कोशिश भी मानी गई।
वाड्रा ने कहा—
"यदि आतंकवादी किसी की पहचान देखकर हत्या कर रहे हैं, तो इसका कारण हमारे देश में हिंदू-मुस्लिम विभाजन है। अल्पसंख्यक समुदाय खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है और यह एक संदेश है प्रधानमंत्री को कि हम सुरक्षित नहीं हैं।"
यह बयान न केवल संवेदनशीलता की कमी दिखाता है, बल्कि इससे पीड़ित परिवारों की भावनाओं को भी ठेस पहुंची। वे लोग जिन्होंने अपनों को खोया, उनके लिए यह एक तरह की पीड़ा को और गहरा करने जैसा था।
वाड्रा के बयान पर कानूनी कार्रवाई की मांग: हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस की याचिका
रॉबर्ट वाड्रा के बयान को लेकर तीखी प्रतिक्रिया सिर्फ आम जनता की नहीं थी, बल्कि कई संगठनों ने इसे एक गंभीर मामला मानते हुए कानूनी कार्रवाई की मांग की है। 'हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस' और कुछ अन्य संगठनों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ में एक याचिका दायर की है।
इस याचिका में कहा गया है कि:
रॉबर्ट वाड्रा का बयान आतंकवाद को न्यायसंगत ठहराने का प्रयास है।
यह राष्ट्र विरोधी तत्वों को बल देने जैसा है।
केंद्र सरकार को SIT गठित कर इस बयान की जांच करानी चाहिए।
वाड्रा के खिलाफ BNS (Bharatiya Nyaya Sanhita) के तहत मुकदमा दर्ज हो।
याचिका पर अब लखनऊ पीठ में शुक्रवार को सुनवाई होनी है। यदि कोर्ट इस पर संज्ञान लेता है, तो यह देश में नेताओं की बयानबाज़ी को लेकर एक नई मिसाल बन सकती है।
क्या यह धार्मिक विभाजन को बढ़ावा देने वाली राजनीति है?
रॉबर्ट वाड्रा का बयान इस बात को भी उजागर करता है कि कैसे आतंकी घटनाएं भी अब राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बन जाती हैं। जब नेताओं के बयान पीड़ितों की संवेदना को ठेस पहुंचाने लगें और साथ ही आतंकवाद को धर्म के चश्मे से देखा जाए, तो यह लोकतंत्र और सामाजिक सौहार्द के लिए खतरे की घंटी है।
वाड्रा के शब्दों ने उन आतंकियों को अप्रत्यक्ष रूप से नैतिक आधार देने की कोशिश की जो निर्दोष लोगों की हत्या करते समय उनकी धार्मिक पहचान जांच रहे थे। यह सवाल उठाता है कि क्या आज के नेता वोट बैंक के लिए देश की अखंडता और सुरक्षा से भी समझौता करने को तैयार हैं?
इस बयान ने न केवल देश को शर्मसार किया, बल्कि विपक्ष की भी आलोचना का कारण बना। कई विपक्षी दलों ने वाड्रा से किनारा कर लिया और कहा कि यह उनका व्यक्तिगत विचार है, पार्टी की नहीं। लेकिन इतना तो तय है कि इस बयान ने एक नई बहस को जन्म दिया है—क्या नेताओं को भी अब ‘साइबर आतंक’ और ‘बयानबाज़ी आतंक’ से बचना चाहिए?
सामाजिक और कानूनी नज़रिए से इस बयान का प्रभाव
कानून के अनुसार, किसी भी व्यक्ति द्वारा दिया गया ऐसा बयान, जो सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ सकता है या किसी खास धर्म या समुदाय के खिलाफ नफरत फैला सकता है, दंडनीय अपराध हो सकता है। भारतीय दंड संहिता और अब भारत की नई ‘भारतीय न्याय संहिता’ (BNS) में ऐसे मामलों के लिए स्पष्ट प्रावधान हैं।
रॉबर्ट वाड्रा के बयान से कई संवेदनशील सवाल खड़े हो गए हैं:
क्या यह बयान आतंकियों के उद्देश्यों को मजबूती देता है?
क्या यह अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को बेहतर करने का प्रयास है या विभाजनकारी राजनीति का हिस्सा?
क्या यह बयान भारतीय समाज को और विभाजित कर सकता है?
कोर्ट इस पर क्या रुख अपनाता है, यह देखने की बात होगी। लेकिन इतना तय है कि इस पूरे प्रकरण ने यह दिखा दिया है कि आतंकवाद से लड़ने के लिए केवल सुरक्षा नहीं, बल्कि एकता और समझदारी भी ज़रूरी है।
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