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Up Kiran, Digital Desk: उन्नाव के शुक्लागंज इलाके से एक कहानी सामने आई है, जो परिवार और सामाजिक संवेदनाओं को गहराई से छूती है। 17 साल की उम्र में लापता हुई सलमा की जिंदगी 16 वर्षों तक अनजाने रास्तों पर भटकती रही, लेकिन हाल ही में उसे उसके गृह नगर से जोड़ने वाली एक आशा की किरण नजर आई।
सलमा की मानसिक स्थिति बिगड़ने के कारण वह 2009 में अचानक गायब हो गई और पश्चिम बंगाल के एक सुधार गृह में लगभग एक दशक तक इलाज के दौरान रही। लंबे समय तक अपनी याददाश्त खो चुकी सलमा ने धीरे-धीरे उपचार के बाद अपने अतीत की झलक पाई और अपने परिवार के बारे में बताना शुरू किया। इससे स्थानीय पुलिस और अधिकारियों के बीच संपर्क स्थापित हुआ, जिससे सलमा को उसके घर वापस लाने का रास्ता खुला।
लखनऊ के राजकीय महिला शरणालय में जब बंगाल के अधिकारी सलमा को लेकर पहुंचे, तो उसकी आंखों में बहते आंसू उसके दर्द और जज्बात की कहानी कह रहे थे। परिवार से मुलाकात के दौरान उसने अपने तीन बच्चों के बारे में पूछा, जिसके जवाब में उसकी मां मुन्नी का दिल टूट गया। सलमा के लापता रहने के दौरान उसके बच्चे एक-एक करके इस दुनिया से विदा हो चुके थे, और परिवार तो सलमा को भी मर चुकी समझ बैठा था। इस दुखद सच ने वहां मौजूद सभी लोगों की भावनाओं को हिला दिया।
सलमा के पति सगीर मोहम्मद का जिक्र भी हुआ, जबकि परिवार की हालत इस पूरे हादसे से गहरे टूट चुकी थी। घर लौटने के बाद परिवार को सलमा के साथ नया जीवन शुरू करने की उम्मीद मिली, लेकिन पिता असलम के निधन की खबर ने उस खुशी पर करुण छाया छोड़ दी।
राजकीय महिला शरणालय के स्टाफ ने बताया कि सलमा के याददाश्त वापस आने के बाद उसने अपने गांव, गंगाघाट के पास अपने घर के बारे में विस्तार से बताया। उसके मुताबिक, उसके घर के बगल में मस्जिद और खिलौने की दुकान है, साथ ही उसने माता-पिता और बहनों के नाम भी साझा किए। इस घटनाक्रम ने ना केवल एक खोई हुई बेटी को उसके घर वापस लाया, बल्कि सामाजिक पुनर्मिलन और मानवता की भावना को भी जिंदा किया है।
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