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Up Kiran, Digital Desk: भारत के प्रसिद्ध क्रिकेटर संजय बांगर के परिवार में एक दिलचस्प कहानी है, जिसमें उनके बेटे ने एक नई पहचान अपनाई। संजय बांगर की बेटी अनाया ने अपने जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ लिया जब उन्होंने आठ साल की उम्र में अपने अंदर एक महिला के रूप में पहचान महसूस की। अनाया ने यह बात खुद इंस्टाग्राम पर साझा की थी और अपनी यात्रा के बारे में बताया था।

आठ साल की उम्र में महसूस हुआ बदलाव
अनाया ने खुलासा किया कि आठ साल की उम्र में उन्हें पहली बार एहसास हुआ कि उनका शरीर उनके असली स्वभाव से मेल नहीं खा रहा था। वह अक्सर शीशे में अपनी छवि देखकर महसूस करतीं कि वह जिस शरीर में हैं, वह उनका नहीं है। उनका दिल कहता था कि वह एक लड़की हैं। तब से ही उन्होंने अपनी मां के कपड़े पहनकर आत्मा से यह मान लिया था कि यही उनका असली रूप है और वह इसी रूप में जीना चाहती थीं।

क्रिकेट का प्यार, लेकिन एक खालीपन का एहसास
अनाया का मानना था कि क्रिकेट उनका पहला प्यार था। तीन साल की उम्र से क्रिकेट खेलना शुरू करने वाली अनाया ने मुंबई अंडर-16, अंडर-19 और इंगलैंड में क्लब क्रिकेट खेला। हालांकि, क्रिकेट के मैदान पर भी वह खुद को अधूरा महसूस करतीं। वह अपनी असलियत को छिपा कर खेल रही थीं और कभी भी अपने भीतर के असली रूप को महसूस नहीं कर पाईं।

2023 में होर्मोन थेरेपी की शुरुआत
2023 में अनाया ने होर्मोन थेरेपी शुरू की, जो उनके शरीर में बदलाव लाने लगी। इसके साथ ही वह अपने असली रूप के और करीब आ पाई। यह यात्रा सरल नहीं थी, बल्कि दर्दनाक, महंगी और अकेलेपन से भरी थी।

स्वयं के लिए संघर्ष
अपने उपचार के लिए अनाया ने अपनी बचत का इस्तेमाल किया। इंग्लैंड में खेलते हुए, वह कभी ड्रेसेसिंग रूम में सोतीं तो कभी दोस्तों के यहां, ताकि इलाज के लिए पैसे बचा सकें।

माता-पिता का समर्थन, लेकिन अकेले की यात्रा
अनाया के माता-पिता ने उनके होर्मोन थेरेपी के लिए मदद की, लेकिन इसके बाद उन्हें अकेले ही यह यात्रा तय करनी पड़ी। सबसे कठिन समय तब आया जब बीसीसीआई ने यह साबित करने के बावजूद कि अनाया की ताकत एक महिला जैसी है, ट्रांस महिलाओं को खेल में भाग लेने की अनुमति नहीं दी।

क्रिकेट से खुद को चुनना
अनाया का मानना है कि दुनिया के कई देशों जैसे ऑस्ट्रेलिया और कनाडा में ट्रांस वुमन को खेल में भाग लेने की अनुमति है, लेकिन भारत में इसके लिए कोई नियम नहीं हैं। इस स्थिति में उन्हें क्रिकेट और अपनी असल पहचान में से किसी एक को चुनने का विकल्प मिला, और उन्होंने अपनी पहचान को प्राथमिकता दी।

सामाजिक दबाव और दोस्ती का टूटना
इंग्लैंड में रहने के दौरान अनाया को भेदभाव और समाज से भरी हुई नफरत का सामना करना पड़ा। भारत लौटने पर भी उनका सामना पुराने क्रिकेट दोस्तों से हुआ, जिन्होंने उनसे संबंध तोड़े। इस अस्वीकृति के कारण अनाया बहुत निराश हुईं और एक समय तो उन्होंने जीवन खत्म करने तक का विचार किया। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी असलियत को स्वीकार किया।

खेल खो दिया, लेकिन खुद को पाया
हालांकि अनाया को उनका प्रिय खेल खोना पड़ा, लेकिन इस संघर्ष के दौरान उन्होंने खुद को ढूंढ लिया। अब वह पहली बार महसूस कर रही हैं कि वह अपने जीवन में सच्ची खुशी महसूस करती हैं और पूरी तरह से जीवित हैं।

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