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Up Kiran, Digital Desk: पितृ पक्ष वो 15 दिन होते हैं जब हम अपने उन पूर्वजों को याद करते हैं और उनके प्रति अपना सम्मान जताते हैं, जिनकी वजह से आज हम इस दुनिया में हैं। यह समय उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करने का होता है। लेकिन क्या हो अगर आप इन 15 दिनों में किसी कारण से श्राद्ध नहीं कर पाए हों या आपको अपने किसी पूर्वज की मृत्यु की तिथि याद न हो?

इसका भी एक समाधान है, और वह है पितृ पक्ष का आख़िरी और सबसे महत्वपूर्ण दिन - सर्व पितृ अमावस्या। इसे महालया अमावस्या भी कहते हैं।

क्यों है यह दिन इतना ज़्यादा ज़रूरी?

'सर्व पितृ अमावस्या' का मतलब है - सभी पितरों की अमावस्या। जैसा कि नाम से ही साफ है, यह दिन उन सभी पूर्वजों को समर्पित है, चाहे उनकी मृत्यु किसी भी तिथि को हुई हो।

माना जाता है कि इस दिन हमारे सभी पितर धरती पर मौजूद रहते हैं और अपने परिवार वालों से तर्पण (जल) और पिंडदान की उम्मीद करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन पूरी श्रद्धा से किया गया श्राद्ध सीधे उन तक पहुँचता है और वे तृप्त होकर अपनी अगली पीढ़ी को सुख, समृद्धि और शांति का आशीर्वाद देकर विदा लेते हैं। यह पितृ पक्ष का समापन और नवरात्रि की शुरुआत का संकेत भी होता है।

किसका श्राद्ध किया जा सकता है इस दिन?

उन सभी पूर्वजों का, जिनकी मृत्यु की तिथि आपको याद नहीं है।

ऐसे पूर्वज जिनकी अकाल मृत्यु (दुर्घटना या किसी और कारण से) हुई हो।

अगर आप 15 दिनों के श्राद्ध में किसी का श्राद्ध करना भूल गए हों।

यह दिन उन सभी पितरों के लिए है जिन्हें आप याद करना चाहते हैं।

कैसे करें इस दिन पितरों को याद? (सरल विधि):इस दिन श्राद्ध करना बहुत मुश्किल नहीं है। आप बहुत ही सरल तरीके से अपने पितरों को सम्मान दे सकते हैं:

सुबह उठकर स्नान करें और साफ-सुथरे कपड़े पहनें।

दक्षिण दिशा की ओर मुँह करके बैठें। एक बर्तन में थोड़ा गंगाजल, दूध, काले तिल और जौ मिलाकर पितरों को याद करते हुए जल अर्पित करें। इसे ही 'तर्पण' कहते हैं।

किसी ब्राह्मण को घर पर बुलाकर सम्मानपूर्वक भोजन कराएं। भोजन सात्विक होना चाहिए (खीर-पूड़ी का विशेष महत्व है)।

भोजन के बाद ब्राह्मण को अपने सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा और वस्त्र दें।

आखिर में, गाय, कौए और कुत्ते के लिए भी भोजन का एक अंश जरूर निकालें। माना जाता है कि इनके माध्यम से भोजन पितरों तक पहुँचता है।