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Up Kiran, Digital Desk: बिहार की सियासत में बहुत सी कहानियां हैं, लेकिन साल 2000 में नीतीश कुमार का महज सात दिनों तक मुख्यमंत्री रहना आज भी चर्चा का विषय है। यह घटना न केवल एक नेता की राजनीतिक यात्रा का हिस्सा रही, बल्कि उस वक्त बिहार की जनता, गठबंधनों की रणनीति और सत्ता के समीकरणों पर भी गहरा असर पड़ा।
जनता दल से अलग रास्ता और नई राजनीतिक पारी
90 के दशक के मध्य में जब बिहार की राजनीति पर लालू प्रसाद यादव का वर्चस्व था, तब नीतीश कुमार ने उनसे अलग राह चुनने का फैसला किया। 1994 में उन्होंने जॉर्ज फर्नांडिस के साथ मिलकर समता पार्टी बनाई। इस कदम के पीछे लालू के शासन को लेकर असहमति और बदलाव की सोच थी। हालांकि 1995 के विधानसभा चुनाव में जनता ने उन्हें बहुत मजबूत समर्थन नहीं दिया और समता पार्टी महज 7 सीटों पर सिमट गई।
गठबंधन की नई चाल और 2000 का चुनावी समर
वक्त बदला और 2000 का विधानसभा चुनाव आया। इस बार समता पार्टी ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया। दोनों दलों के गठबंधन ने कुल मिलाकर 122 सीटें जीतीं जिसमें समता पार्टी को 34, बीजेपी को 67 और अन्य सहयोगियों को 21 सीटें मिलीं। वहीं, आरजेडी 124 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। लेकिन 324 सदस्यों वाली विधानसभा में किसी भी गठबंधन के पास सरकार बनाने लायक 163 सीटों का जादुई आंकड़ा नहीं था।
शपथ तो ली, पर विश्वास नहीं जीत पाए
केंद्र में एनडीए की सरकार होने के कारण, दिल्ली से यह कोशिश की गई कि बिहार में भी एनडीए की सरकार बने। नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। 3 मार्च 2000 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद संभाला, लेकिन मुश्किलें यहीं से शुरू हुईं। बहुमत साबित करने के लिए जितने विधायक चाहिए थे, उससे एनडीए 21 सीटें पीछे था। निर्दलीयों का समर्थन जुटाने की कोशिश हुई, लेकिन बात नहीं बनी। आखिरकार, 10 मार्च को नीतीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया। यह मुख्यमंत्री कार्यकाल सिर्फ सात दिनों का रहा।
जनता और राज्य पर क्या पड़ा असर?
इस पूरे घटनाक्रम ने बिहार के मतदाताओं को यह अहसास दिलाया कि सिर्फ गठबंधन और रणनीति से सरकार नहीं चल सकती, इसके लिए जनसमर्थन और विश्वास जरूरी है। सात दिन की सरकार ने नीतियों पर कोई बड़ा प्रभाव नहीं डाला, लेकिन लोगों के राजनीतिक नजरिए को जरूर बदला।
फिर लौटी राबड़ी देवी की सरकार
नीतीश के इस्तीफे के बाद आरजेडी ने दोबारा राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया। यह सरकार पूरे पांच साल चली। दिलचस्प बात यह रही कि उस दौर में लालू यादव खुद सीएम नहीं बने, क्योंकि चारा घोटाले में उनकी गिरफ्तारी की आशंका बनी हुई थी। यही वजह थी कि उन्होंने 1997 में इस्तीफा देकर राबड़ी देवी को सत्ता की जिम्मेदारी सौंपी थी।
नीतीश का यह छोटा कार्यकाल क्यों बना बड़ा मोड़?
हालांकि यह मुख्यमंत्री पद पर सबसे छोटा कार्यकाल था, फिर भी यह नीतीश कुमार के लिए एक बड़ी सीख लेकर आया। सत्ता की हकीकत, गठबंधन की पेचीदगियों और जनता के मूड को उन्होंने करीब से देखा। इसके बाद उन्होंने अपनी राजनीति को और मजबूत किया और आगे चलकर कई बार बिहार के मुख्यमंत्री बने।