img

Up Kiran, Digital Desk: बॉलीवुड ने एक और चहेते अभिनेता को खो दिया है। गोवर्धन असरानी, जिन्हें हम सब प्यार से ‘असरानी’ के नाम से जानते हैं, सोमवार शाम 84 वर्ष की उम्र में दुनिया छोड़ गए। लंबे समय से बीमार रहने के बावजूद उनकी अचानक मौत ने फैंस और फिल्म इंडस्ट्री को गहरे सदमे में डाल दिया। खास बात यह है कि उन्होंने उसी दिन दिवाली 2025 की शुभकामनाएं सोशल मीडिया पर साझा की थीं, जिससे उनके निधन की खबर और भी हैरान कर देने वाली है।

असरानी ने अपने शानदार करियर में 300 से अधिक फिल्मों में काम किया। वे भारतीय सिनेमा के सबसे लोकप्रिय हास्य कलाकारों में से एक थे। लेकिन उनका सबसे खास किरदार 1975 की ब्लॉकबस्टर ‘शोले’ में ब्रिटिश काल के जेलर का था। यह छोटा सा लेकिन यादगार रोल उन्हें आज भी दर्शकों की यादों में जिंदा रखता है।

शोले का जेलर और हिटलर से प्रेरणा
सलीम-जावेद की स्क्रिप्ट में एक ऐसा जेलर चाहिए था जो एडॉल्फ हिटलर जैसा दिखे और बोले। असरानी को हिटलर की आवाज और चाल-ढाल सीखने के लिए पुणे के फिल्म संस्थान में रिकॉर्डिंग के जरिए खास ट्रेनिंग दी गई। इसके बाद उन्होंने अपनी मशहूर लाइन "हम अंग्रेजों के ज़माने के जेलर हैं" इतनी प्रभावशाली आवाज़ और अंदाज़ में दी कि पूरे सिनेमाघर तालियों से गूंज उठे।

प्रारंभिक जीवन और फिल्मी शुरुआत
असरानी का जन्म 1 जनवरी 1941 को जयपुर में एक सिंधी हिंदू परिवार में हुआ। पढ़ाई-लिखाई में ज्यादा रुचि न लेकर उन्होंने अपनी कला और अभिनय की दुनिया में कदम रखा। उन्होंने पुणे के फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (FTII) से प्रशिक्षण लिया। 1967 में ‘हरे कांच की चूड़ियाँ’ से उन्होंने फिल्मी करियर की शुरुआत की।

स्वर्णिम युग और सफलता के शिखर
1970 और 1980 के दशक में असरानी के करियर का स्वर्णिम दौर था। इस दौरान उन्होंने 100 से अधिक फिल्मों में काम किया। राजेश खन्ना के साथ उनकी जोड़ी काफी पसंद की गई। ‘चुपके चुपके’, ‘नमक हराम’, ‘बावर्ची’ जैसी फिल्मों में उनका कॉमेडी टाइमिंग दर्शकों को खूब भाया।

कॉमेडी से लेकर निर्देशन तक
असरानी सिर्फ हास्य कलाकार नहीं थे। उन्होंने ‘चला मुरारी हीरो बनने’ जैसी फिल्मों का निर्देशन भी किया। 1974 से 1997 के बीच छह फिल्मों का निर्देशन कर उन्होंने अपनी बहुमुखी प्रतिभा साबित की।

बाद के सालों में वापसी
80 के दशक के अंत में जब हास्य फिल्मों की मांग कम हुई, तो असरानी का करियर थोड़ा ठंडा पड़ा। लेकिन 90 और 2000 के दशक में उन्होंने ‘हेरा फेरी’, ‘चुप चुप के’, ‘गरम मसाला’ जैसी फिल्मों से वापसी की और दर्शकों के दिलों में फिर से जगह बनाई।

व्यक्तिगत जीवन और विरासत
असरानी ने मंजू बंसल से शादी की और दोनों ने कई फिल्मों में साथ काम किया। 1988 से 1993 तक वे एफटीआईआई के निदेशक भी रहे। उनकी अंतिम भूमिकाओं में वेब सीरीज ‘परमानेंट रूममेट्स’ और टीवी शो ‘पार्टनर्स ट्रबल हो गई डबल’ शामिल हैं।