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terror attack: पांच अगस्त 2019 के बाद तीन साल तक जम्मू-कश्मीर को लेकर सुरक्षा तंत्र में उत्साहपूर्ण माहौल रहा। अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद कोई खूर खराबा नहीं हुआ, जिससे भयावह भविष्यवाणियाँ गलत साबित हुईं। पत्थरबाज कहीं नज़र नहीं आए और हत्याओं की छिटपुट घटनाओं को छोड़ दें, तो घाटी में आतंकवाद में कमी देखी गई।

1 जनवरी 2023 को जब डांगरी, राजौरी में ग्रामीणों की गोली मारकर हत्या की गई थी, तब से लेकर अब तक की घटनाओं ने खतरे की घंटी बजा दी है। लेकिन जून और अब जुलाई में जो खूनी मौसम देखने को मिला है - जो 'हाल ही तक शांतिपूर्ण' रहा - कठुआ, डोडा, उधमपुर ने देखा है, उससे यह स्पष्ट हो गया है कि जम्मू संभाग में आतंकवाद का फिर से उभरना मोदी 3.0 के लिए सबसे बड़ी आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में से एक होगा।

शांतिपूर्ण स्थानों पर आतंकी कर रहे हमला

कठुआ के माचेडी में लगभग दो दशकों से कोई आतंकी हिंसा नहीं देखी गई थी। लेकिन हाल ही में आतंकवाद के चरम पर इलाके में पुलिस चौकियाँ जला दी गईं। जिससे वहां हाई अलर्ट जारी है। सन् 2000 में, एक स्थानीय सरकारी ठेकेदार को आतंकवादियों ने गोली मार दी थी - यह आखिरी बड़ी घटना थी जिसे स्थानीय लोग याद करते हैं। उसके बाद, इस क्षेत्र को 'शांतिपूर्ण' कहा जाने लगा।

क्षेत्र में सेना का बेस, जो कभी सक्रिय था, धीरे-धीरे कम हो गया और अंततः सेनाएं क्षेत्र से वापस बुला ली गईं, जबकि ग्राम रक्षा समितियों के हथियार और गोला-बारूद कम होते गए।

8 जुलाई 2024 तक ये शांतिपूर्ण रहा, जब फिर से आतंकी हमला हुआ। सेना के ट्रक पर ग्रेनेड फेंके गए और फिर गोलीबारी की गई। गढ़वाल राइफल के पांच भारतीय सैन्यकर्मी मारे गए और छह घायल हो गए।

बता दें कि जून में कठुआ, डोडा, हीरानगर में एक साथ हुए हमलों ने इस क्षेत्र की शांति को फिर से छिन्न-भिन्न कर दिया। और, 8 जुलाई को कठुआ में सेना के वाहन पर एक और हमला हुआ।

आतंकी पुरानी सुरंगो की वजह से हिंसा फैला रहे हैं। जो सेना के लिए चुनौती बन गया है।

 

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