
Up Kiran, Digital Desk: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और प्रखर वक्ता शशि थरूर ने भारतीय इतिहास के सबसे विवादास्पद दौर, 1975 में लगी इमरजेंसी, को 'देश के इतिहास का एक काला अध्याय' करार दिया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि आज का भारत 1975 का भारत नहीं है और अब वैसी तानाशाही लागू करना संभव नहीं है, क्योंकि देश के लोकतांत्रिक संस्थान और नागरिक समाज काफी मजबूत हो चुके हैं।
थरूर ने यह टिप्पणी ऐसे समय में की है जब देश में इमरजेंसी की 49वीं बरसी मनाई जा रही है। उन्होंने अपने बयान में कहा कि उस दौरान नागरिक स्वतंत्रता को कुचला गया था, प्रेस की आजादी छीनी गई थी और संवैधानिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था। उन्होंने उस दौर को भारतीय लोकतंत्र पर एक बड़ा हमला बताया।
मजबूत लोकतांत्रिक संस्थाएं: हमारी न्यायपालिका, चुनाव आयोग और मीडिया (भले ही उन पर दबाव हो) काफी हद तक स्वतंत्र और सशक्त हैं।
सक्रिय नागरिक समाज: लोग अपने अधिकारों के प्रति अधिक जागरूक हैं और किसी भी अलोकतांत्रिक कदम के खिलाफ तुरंत आवाज़ उठाने को तैयार रहते हैं। सोशल मीडिया ने सूचना के प्रसार को तेज कर दिया है, जिससे सरकार के लिए सेंसरशिप लगाना मुश्किल है।
बढ़ी हुई राजनीतिक चेतना: लोग अब पहले से कहीं ज़्यादा राजनीतिक रूप से जागरूक हैं और अपने नेताओं से सवाल पूछने में हिचकिचाते नहीं हैं।
थरूर का यह बयान कांग्रेस पार्टी के भीतर से आया है, जिसने खुद इमरजेंसी लागू की थी। यह दिखाता है कि पार्टी अब उस ऐतिहासिक गलती को स्वीकार कर रही है और वर्तमान लोकतांत्रिक मूल्यों पर जोर दे रही है। उनका यह बयान मौजूदा राजनीतिक माहौल में भी प्रासंगिक है, जहां विपक्ष अक्सर सरकार पर अलोकतांत्रिक होने के आरोप लगाता रहता है। थरूर ने एक तरह से यह संदेश दिया है कि भारतीय लोकतंत्र इतना परिपक्व हो चुका है कि उसे आसानी से दबाया नहीं जा सकता।
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