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वन विभाग के एक गजब के ठसकेदार अफसर हैं...ये इत्ते बड़े वाले ठसकेदार अफसर हैं कि अपर मुख्य सचिव का आदेश भी इनके पास आने से डरता है...और आ गया तो मिंमियाकर पूछता है कि-"पीसीसीएफ साहेब अगर आपकी नजर-ए-इनायत हो जाए तो मैं अपर मुख्य सचिव का आदेश हूं, कहो तो लागू हो जाऊं।" अब अगर पीसीसीएफ साहेब चाहते हैं तो अपर मुख्य सचिव के आदेश मानते हैं और नहीं चाहते हैं तो न मानते।

किस्सा कुछ यूं है- अपर मुख्य सचिव वन मनोज सिंह ने 31 अक्टूबर, 2023 को प्रधान मुख्य वन संरक्षक को पत्र लिखकर कहा था कि संदिग्ध सत्यनिष्ठा वाले कार्मिकों की तैनाती संवेदनशील पदों पर नहीं किए जाने का प्रावधान है। स्थानान्तरित कार्मिकों को समय से रिलीव न करना अनुशासनहीनता मानी जाएगी, जो भी संबंधित कार्मिकों को कार्यमुक्त नहीं करेंगे। उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही की जाएगी। 

अपर मुख्य सचिव को यह पत्र लिखे एक साल  बीत चुका है पर अभी तक शासन के आदेशों का अनुपालन नहीं हुआ है। जबकि अपर मुख्य सचिव ने पत्र के जरिए दो दिन के अंदर संबंधित कार्मिकों का रिलीविंग आर्डर भी तलब किया था। पर उनका यह आदेश कागजी बन कर रह गया है। उसके बाद अब वन महकमे के अंदरखाने चर्चा चल रही है कि यदि वन विभाग के मुखिया का आदेश भी मुख्य वन संरक्षक नहीं मान रहे हैं तो फिर किसके इशारे पर महकमे की फाइलें दौड़ती हैं। यह विवेचना का विषय हो सकता है।

उपरोक्त मामले में संबंधित दोषी कर्मचारी के खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति की जा चुकी है, कार्रवाई पीसीसीएफ ....."क्षम्मा जी"...मल्लब "शर्मा जी" के स्तर पर रोक दी गई है,  ये कहकर कि दोषी कर्मचारी को सस्पेंड करने का पर्याप्त साक्ष्य नहीं पाया गया।  ये पहला मामला नहीं है जिसमे पीसीसीएफ क्षम्मा जी उर्फ शर्मा जी द्वारा कार्रवाई नहीं की गई है बल्कि ऐसे कई मामले हैं जिनमे कोई न कोई कोई बहाना बताकर पीसीसीएफ क्षम्मा जी यानि के शर्मा जी कार्रवाई करने से पीछे हट जाते रहे हैं। इनमें से एक चर्चित प्रकरण है जिसमें मंत्री और शासन के चाहते हुए भी जांच में दोषी पाए गए पीसीसीएफ क्षम्मा जी के ड्राइवर और दो प्रशासनिक अधिकारी के विरुद्ध पीसीसीएफ क्षम्मा जी द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई थी। एसीएस द्वारा मंत्री के निर्देश के बाद कई डीओ लेटर भेजे गए लेकिन पीसीसीएफ एस के शर्मा ने शासन के पत्रों का कोई संज्ञान ही नहीं लिया।

भ्रष्ट अधिकारी के रूप में कुख्यात क्षम्मा जी याने के शर्मा के ऊपर वन विभाग के एक रिटायर्ड ऑफिसर जिसका भाई उत्तर प्रदेश सरकार में पंचम तल पर तैनात हैं का वरदहस्त है जिसके चलते क्षम्मा जी बेलगाम घोड़ा बने हुए हैं और एसीएस का आदेश रद्दी के टोकरी में डाल देते हैं। यहां यह उल्लेख कर दूं कि जुलाई, 2023 में वन विभाग में बगैर सक्षम स्तर से अनुमोदन से करीबन वन अधिकारियों के तबादले के बाद बवाल मचा तो आनन फानन में तबादले निरस्त किए गए।

जांच के बाद प्रशासनिक अधिकारी आशीष पाण्डेय, रामनरेश यादव और वाहन चालक बसंत ओझा के ट्रांसफर का आदेश जारी हुए। पर उनका अभी तक अनुपालन नहीं हो सका है। यह स्थिति तब है, जब शासन की तरफ से प्रधान मुख्य वन संरक्षक और विभागाध्यक्ष को कार्रवाई के लिए लगातार पत्र लिखा जा रहा है। आदेश में यह भी कहा गया है कि जो कार्मिक स्थानान्तरण आदेशों का पालन न करते हुए आरोपी कार्मिकों को रिलीव नहीं करेंगे तो उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही की जाएगी। अपर मुख्य सचिव के आदेश का पालन न होने के बाद सवाल उठ रहे हैं कि फिर आखिर किसके इशारे पर वन विभाग में फाइलें दौड़ती हैं।.. फिलहाल क्षम्मा जी की ठसकदार पायल झकास छमछमा रही है...है कोई भाई का लाल जो क्षम्मा जी की पायल का एक घुंघरू तक नोच ले......

….बहराइच में भेड़िया  बिजनौर में गुलदार  भ्रष्टाचार का आतंक …जारी …
 

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