Up Kiran, Digital Desk: पाकिस्तान की नींव, जो 1947 में भारत से अलग होकर अस्तित्व में आई थी, अपने भीतर कई संघर्षों और विभाजन को समेटे हुए है। यह देश जातीय, सांस्कृतिक और भाषाई विविधताओं से भरा हुआ है, लेकिन सबसे जटिल और गहरे सवालों में से एक है—पश्तून समुदाय का संघर्ष। पाकिस्तान में पश्तून, बलूच, और सिंधी जैसे समुदाय खुद को पंजाबियों से अलग मानते हैं, और इनकी शिकायतें यही हैं कि उन्हें पाकिस्तान नहीं बल्कि 'पंजाबिस्तान' के रूप में देखा गया है।
पश्तूनों का इतिहास: 6000 साल पुरानी पहचान
पश्तून समुदाय का इतिहास पाकिस्तान और इस्लाम के इतिहास से कहीं पुराना है। पश्तूनों का कहना है कि इस्लाम और पाकिस्तान का इतिहास तो महज 75 साल पुराना है, लेकिन उनकी नस्ल का इतिहास करीब 6000 साल पुराना है। तिलक देवाशेर, जो पश्तूनों पर लिखी किताब "The Pashtuns: A Contested History" के लेखक हैं, मानते हैं कि आज पश्तून ब्रिटिश काल के डूरंड रेखा के कारण अफगानिस्तान और पाकिस्तान में बंटे हुए हैं।
देवाशेर लिखते हैं, "पश्तूनों का एक साझा इतिहास, संस्कृति, और भाषा है, और यही उन्हें एक साझा पहचान देता है।" हालांकि, आज भी उनके पास अपना राष्ट्र नहीं है, जो एक बड़ी विडंबना है क्योंकि वे दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आदिवासी आबादी हैं।
पख्तूनिस्तान की मांग
पश्तूनों का यह कहना है कि वे पाकिस्तान का हिस्सा बनने के बजाय एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में पख्तूनिस्तान की मांग करते हैं। मार्च 1948 में, पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने गफ्फार खान से पूछा था, "पठान किसी मुल्क का नाम है या किसी समुदाय का?" इस पर गफ्फार खान ने साफ तौर पर कहा था, "हमारी असली पहचान पख्तून है। हम पख्तूनिस्तान चाहते हैं और हमारी इच्छा है कि सभी पठान डूरंड लाइन के दोनों ओर एकजुट होकर पख्तूनिस्तान बने।"
डूरंड रेखा और अफगानिस्तान की प्रतिक्रिया
गफ्फार खान का यह बयान 1948 में ही था, और इस सवाल पर आज भी विवाद कायम है। अफगानिस्तान ने डूरंड रेखा को कभी स्वीकार नहीं किया। अफगानिस्तान के उप-विदेश मंत्री अब्बास स्तानिकजई ने स्पष्ट रूप से कहा था कि अफगानियों को पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए वीजा की आवश्यकता नहीं है, इस बयान से साफ होता है कि वे डूरंड रेखा को मान्यता नहीं देते।
पाकिस्तान और अफगानिस्तान में पश्तूनों की संख्या
पाकिस्तान में पश्तूनों की संख्या करीब 3.10 करोड़ है, जो पाकिस्तान की कुल आबादी का 16% बनती है। यह संख्या देश में तीसरी सबसे बड़ी जातीय समूह की है, पहले स्थान पर पंजाबी और दूसरे स्थान पर सिंधी हैं। दिलचस्प बात यह है कि अफगानिस्तान में करीब डेढ़ करोड़ पश्तून रहते हैं, जो वहां की कुल आबादी का 40% हैं। हालांकि, अफगानिस्तान में वे बहुसंख्यक नहीं हैं, लेकिन सबसे बड़ा समुदाय माने जाते हैं।
पश्तून और पाकिस्तान का भविष्य
पश्तूनों का संघर्ष केवल पाकिस्तान के भीतर ही नहीं, बल्कि अफगानिस्तान के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण है। पश्तूनों के लिए पाकिस्तान और अफगानिस्तान दोनों ही अपने घर हैं, लेकिन दोनों देशों की राजनीतिक स्थितियां और विभाजन उनके लिए एक निरंतर चुनौती बने हुए हैं। क्या पाकिस्तान कभी पश्तूनों की पहचान को पूरी तरह से स्वीकार करेगा? क्या पख्तूनिस्तान की उनकी मांग पूरी होगी? यह सवाल भविष्य के लिए अनुत्तरित हैं।
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