
Up Kiran, Digital Desk: भारतीय लोकतंत्र के लिए एक बेहद अहम और संवेदनशील मामला अब सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर पहुँच गया है। भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से 14 ऐसे महत्वपूर्ण सवालों पर विचार करने का आग्रह किया है, जिनका संबंध राज्यों द्वारा पारित विधेयकों पर राज्यपालों और स्वयं राष्ट्रपति द्वारा सहमति (assent) देने की समय-सीमा से है। सुप्रीम कोर्ट ने इन सवालों की गंभीरता को समझते हुए इनकी जांच करने पर सहमति व्यक्त की है।
मामला क्या है और क्यों है इतना अहम? हमारे संविधान में, जब कोई राज्य विधानसभा कोई विधेयक पारित करती है, तो उसे राज्यपाल की सहमति के लिए भेजा जाता है। राज्यपाल या तो सहमति दे सकते हैं, उसे रोक सकते हैं, या उसे राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित कर सकते हैं। इसी तरह, केंद्रीय विधेयकों को संसद से पास होने के बाद राष्ट्रपति की सहमति चाहिए होती है।
समस्या तब पैदा होती है जब राज्यपाल या राष्ट्रपति किसी विधेयक पर लंबे समय तक कोई फैसला नहीं लेते, जिससे वह अनिश्चितकाल के लिए "लटका" रहता है। इस देरी के कारण कई राज्यों में, खासकर केंद्र और राज्य में अलग-अलग सरकारों वाले राज्यों में, राजनीतिक और संवैधानिक गतिरोध पैदा हुए हैं। कई बार ऐसे विधेयक जन कल्याण या महत्वपूर्ण नीतियों से संबंधित होते हैं, और उन पर देरी से विकास कार्य रुक जाते हैं।
राष्ट्रपति के 14 सवाल: राष्ट्रपति मुर्मू द्वारा सुप्रीम कोर्ट से पूछे गए ये 14 सवाल इसी संवैधानिक उलझन को दूर करने और प्रक्रिया में स्पष्टता लाने से संबंधित हैं। इन सवालों में संभवतः यह शामिल होगा कि:
राज्यपाल या राष्ट्रपति को विधेयक पर सहमति देने के लिए अधिकतम कितना समय लगना चाहिए?
क्या संविधान में इसके लिए कोई निश्चित समय-सीमा तय होनी चाहिए?
विधेयक को अनिश्चितकाल तक रोके रखने की राज्यपाल/राष्ट्रपति की शक्ति की क्या सीमाएं हैं?
और यदि कोई समय-सीमा तय नहीं है, तो इसकी न्यायिक समीक्षा कैसे की जाए?
सुप्रीम कोर्ट की भूमिका और इसका महत्व: सुप्रीम कोर्ट, संविधान का अंतिम व्याख्याकार है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की सहमति का मतलब है कि अब इस संवैधानिक पहेली पर गहन विचार-विमर्श होगा। न्यायालय इस बात पर गौर करेगा कि संविधान की भावना क्या है और कैसे सरकार के विभिन्न अंगों के बीच शक्तियों का संतुलन बना रहे, ताकि कानून बनाने की प्रक्रिया सुचारु रूप से चले और जनता के हित प्रभावित न हों।
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