
Up Kiran, Digital Desk: आर्कटिक क्षेत्र, जो कभी शांत बर्फीले विस्तार के रूप में जाना जाता था, अब वैश्विक भू-राजनीति का एक नया और खतरनाक केंद्र बनता जा रहा है। यहाँ रूस, चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा एक 'नए शीत युद्ध' को हवा दे रही है, जिससे क्षेत्र में तनाव लगातार बढ़ रहा है।
जलवायु परिवर्तन आर्कटिक में बढ़ते तनाव का एक प्रमुख कारण है। जैसे-जैसे आर्कटिक की बर्फ पिघल रही है, इस क्षेत्र में अनमोल प्राकृतिक संसाधनों – जैसे तेल, गैस और दुर्लभ खनिजों – तक पहुंच आसान हो रही है। इसके अलावा, नए समुद्री शिपिंग मार्ग, विशेष रूप से उत्तरी समुद्री मार्ग (Northern Sea Route), खुल रहे हैं जो एशिया और यूरोप के बीच यात्रा के समय को काफी कम कर सकते हैं। ये आर्थिक और रणनीतिक लाभ इन देशों को इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
संसाधनों और मार्गों पर नियंत्रण की इस होड़ में, सैन्यीकरण एक चिंताजनक प्रवृत्ति बन गया है। रूस अपनी आर्कटिक सैन्य उपस्थिति को लगातार मजबूत कर रहा है, नए सैन्य ठिकाने बना रहा है और नौसेना अभ्यास कर रहा है। इसका लक्ष्य इस क्षेत्र में अपनी ऐतिहासिक और भौगोलिक पकड़ को बनाए रखना है।
इसके जवाब में, संयुक्त राज्य अमेरिका, जो आर्कटिक परिषद का एक सदस्य है और इस क्षेत्र में रूस की बढ़ती गतिविधियों से चिंतित है, अपनी गतिविधियों और निगरानी को बढ़ा रहा है। वे अपनी नौसैनिक क्षमताओं को मजबूत कर रहे हैं और सहयोगियों के साथ मिलकर क्षेत्र में अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं।
वहीं, चीन, भले ही एक आर्कटिक राष्ट्र न हो, खुद को 'निकट-आर्कटिक राज्य' घोषित कर चुका है और 'ध्रुवीय रेशम मार्ग' (Polar Silk Road) के माध्यम से अपनी आर्थिक और वैज्ञानिक उपस्थिति बढ़ा रहा है। चीन की यह बढ़ती रुचि उसकी रणनीतिक मंशाओं पर सवाल खड़े करती है और इसे पश्चिमी देशों द्वारा एक चुनौती के रूप में देखा जा रहा है।
आर्कटिक में यह बढ़ती प्रतिस्पर्धा और सैन्यीकरण एक नए शीत युद्ध की नींव रख रहा है, जो वैश्विक सुरक्षा के लिए गंभीर परिणाम ला सकता है। इस क्षेत्र में बढ़ता तनाव न केवल आर्कटिक के नाजुक पर्यावरण को खतरे में डाल रहा है, बल्कि बड़ी शक्तियों के बीच सीधे टकराव की संभावना को भी बढ़ा रहा है। यह देखना बाकी है कि कूटनीति और सहयोग इस बढ़ती होड़ को कैसे शांत कर पाएंगे।
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