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Up Kiran, Digital Desk: अमेरिका की यूनिवर्सिटी में पढ़ाई का सपना देख रहे लाखों विदेशी छात्रों के लिए एक बुरी खबर आ सकती है. अमेरिकी सरकार एक ऐसे प्रस्ताव पर विचार कर रही है, जो अगर लागू हुआ तो वहां के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की पूरी तस्वीर बदल कर रख देगा. इस प्रस्ताव के तहत, सरकारी फंड लेने वाली यूनिवर्सिटीज को न सिर्फ विदेशी छात्रों का कोटा कम करना होगा, बल्कि 'व्यक्तिगत स्वतंत्रता', 'राष्ट्रवाद' और 'पूंजीवाद' जैसी विचारधाराओं को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम भी चलाने होंगे.

क्या हैं नए नियम: एक अमेरिकी सरकारी एजेंसी के ड्राफ्ट मेमो के अनुसार, संघीय सरकार से फंड (Federal Funds) पाने के लिए विश्वविद्यालयों को दो बड़ी शर्तें पूरी करनी होंगी:

75% घरेलू छात्र अनिवार्य: यूनिवर्सिटी को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके कुल छात्रों में कम से कम 75% छात्र अमेरिकी हों. इसका सीधा मतलब है कि विदेशी छात्रों का कोटा 25% पर सीमित कर दिया जाएगा. यह एक बहुत बड़ा बदलाव है, क्योंकि कोलंबिया, NYU और कार्नेगी मेलन जैसी कई बड़ी यूनिवर्सिटीज में 30% से भी ज्यादा छात्र विदेशी हैं.

विचारधारा का पाठ: कॉलेजों को 'व्यक्तिगत स्वतंत्रता', 'राष्ट्रवाद' और 'पूंजीवाद' को बढ़ावा देने वाले एजुकेशनल प्रोग्राम बनाने होंगे. पहली बार सरकारी फंडिंग को इस तरह की विचारधाराओं को बढ़ावा देने से जोड़ा जा रहा है.

सरकार क्यों ला रही है यह प्रस्ताव?

ड्राफ्ट में कहा गया है कि इन नियमों का मकसद अमेरिका के उच्च शिक्षा सिस्टम को चीन, रूस और ईरान जैसे "दुश्मन देशों" के "शोषण" से बचाना है. सरकार का मानना है कि ये देश अमेरिकी अकादमिक संसाधनों का फायदा उठाकर अपनी ताकत बढ़ा रहे हैं.

क्या होगा इसका असर?भारतीय छात्रों पर सीधा असर: अमेरिका में चीन के बाद सबसे ज्यादा विदेशी छात्र भारत से ही जाते हैं. अगर यह नियम लागू हुआ, तो भारतीय छात्रों के लिए अमेरिकी यूनिवर्सिटी में एडमिशन पाना बहुत मुश्किल हो जाएगा.

यूनिवर्सिटीज को भारी नुकसान: कई विश्वविद्यालय सरकारी रिसर्च फंड पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं. इसके अलावा, विदेशी छात्र घरेलू छात्रों से कहीं ज्यादा फीस देते हैं, जो इन संस्थानों की कमाई का एक बड़ा जरिया है. इन दोनों स्रोतों पर मार पड़ने से उनकी आर्थिक हालत खराब हो सकती है.

'ब्रेन ड्रेन' का उल्टा असर: अमेरिका जो दुनियाभर से बेहतरीन टैलेंट खींचता है, वह अब बंद हो सकता है. इससे अमेरिका को ही अकादमिक और रिसर्च के क्षेत्र में नुकसान उठाना पड़ सकता है.

अकादमिक स्वतंत्रता पर हमला: आलोचकों का मानना है कि यह प्रस्ताव विश्वविद्यालयों की अकादमिक स्वतंत्रता पर सीधा हमला है और एक खास तरह की राजनीतिक विचारधारा को थोपने की कोशिश है.

फिलहाल यह सिर्फ एक ड्राफ्ट है और इसे मंजूरी मिलना बाकी है. लेकिन अगर यह प्रस्ताव पास हो गया, तो यह न केवल अमेरिका, बल्कि वैश्विक शिक्षा के परिदृश्य को हमेशा के लिए बदल सकता है.