
मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू जब सत्ता में आए थे, तो उनका एजेंडा साफ था – 'इंडिया आउट' यानी भारत के प्रभाव को मालदीव से खत्म करना। उन्होंने चुनावी प्रचार के दौरान भारत पर निर्भरता को खत्म करने के वादे किए थे। सत्ता में आने के बाद भी उन्होंने भारतीय सैनिकों को मालदीव से हटाने की प्रक्रिया शुरू की थी। लेकिन सिर्फ 20 महीनों में ही मुइज्जू का रुख पूरी तरह बदल गया है।
हाल ही में मालदीव की सरकार ने भारत के साथ दोबारा सैन्य और कूटनीतिक सहयोग बढ़ाने की इच्छा जताई है। भारतीय अधिकारियों और मुइज्जू सरकार के बीच कई सकारात्मक बैठकें हुई हैं। इससे साफ संकेत मिलते हैं कि मालदीव अब भारत के साथ अपने रिश्तों को सुधारने को मजबूर हो गया है।
मालदीव की इस नीति परिवर्तन के पीछे कई वजहें मानी जा रही हैं। पहली – चीन पर बढ़ती निर्भरता और उस पर आंतरिक असहमति। दूसरी – भारत की ओर से कोई खुला विरोध न करना, बल्कि चुपचाप कूटनीति के ज़रिए अपना प्रभाव बनाए रखना। और तीसरी – पर्यटन और व्यापार में भारत की अहम भूमिका, जिससे मालदीव की अर्थव्यवस्था को फायदा होता है।
पीएम मोदी की विदेश नीति का यह एक और उदाहरण है, जहां उन्होंने बिना आक्रामक रुख अपनाए, रणनीतिक धैर्य से पड़ोसी देश की दिशा को बदल दिया।
मालदीव के लिए यह यू-टर्न अब मजबूरी बन गया है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का कद लगातार बढ़ता जा रहा है और मुइज्जू को भी यह समझ आ गया है कि पड़ोसी से बिगाड़ कर नहीं, साथ मिलकर ही भविष्य सुरक्षित किया जा सकता है।
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