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Up Kiran, Digital Desk: हैदराबाद में आयोजित 'क्लाइमेट एक्शन कॉन्क्लेव' में विशेषज्ञों ने जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए संचारकों (कम्युनिकेटर्स) को सबसे आगे आने का आह्वान किया है। एटीवी भारत, सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज और केएनआरके ट्रस्ट द्वारा आयोजित इस सम्मेलन में इस बात पर जोर दिया गया कि पत्रकार, मीडिया पेशेवर, शिक्षाविद और वैज्ञानिक जैसे संचारक जलवायु साक्षरता को बढ़ावा देने और जन जागरूकता फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

प्रोफेसर और वरिष्ठ पत्रकार के. नागेश्वर ने अपने संबोधन में कहा कि संचारकों को जलवायु परिवर्तन से संबंधित वैज्ञानिक तथ्यों को सरल और सहज भाषा में आम जनता तक पहुंचाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अक्सर वैज्ञानिक जानकारी जटिल होती है, जिसे समझना मुश्किल होता है। संचारकों का काम इस खाई को पाटना है। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि मीडिया को जलवायु परिवर्तन के बारे में फैल रही भ्रामक सूचनाओं से मुकाबला करने और विश्वसनीय जानकारी प्रदान करने में अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए।

तेलंगाना के पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक, सी. नरसिंगा राव ने वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित जानकारी के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन का आजीविका, कृषि और जल संसाधनों पर गहरा असर पड़ रहा है। संचारकों को इन प्रभावों को स्पष्ट रूप से समझाना चाहिए और लोगों को यह बताना चाहिए कि उन्हें क्यों और कैसे कार्रवाई करनी चाहिए।

तेलंगाना जर्नलिस्ट्स फोरम के डॉ. बी. वेंकट रेड्डी ने मीडिया से आग्रह किया कि वे केवल समस्याओं को उजागर करने के बजाय, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए उठाए जा रहे कदमों और समाधानों पर भी ध्यान केंद्रित करें। उन्होंने कहा कि रिपोर्टिंग को अधिक स्थानीय और कार्रवाई-उन्मुख होना चाहिए ताकि लोग यह समझ सकें कि यह मुद्दा उनके जीवन को कैसे प्रभावित करता है और वे इसमें कैसे योगदान दे सकते हैं।

कॉन्क्लेव ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि मीडिया और संचारकों की जिम्मेदारी सिर्फ जानकारी देने तक सीमित नहीं है, बल्कि उन्हें नीतिगत बदलावों को प्रेरित करना, सतत प्रथाओं को बढ़ावा देना और जलवायु संकट से निपटने के लिए एक सामूहिक प्रयास का हिस्सा बनना भी है। यह तभी संभव है जब संचारक सटीक, जिम्मेदार और प्रेरक ढंग से काम करें।

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