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हिंदी सिनेमा के शुरुआती दौर में एक नाम ऐसा भी था, जिसने अपने अभिनय और नृत्य से दर्शकों का दिल जीत लिया, लेकिन उसी नाम पर एक ऐसा विवाद भी जुड़ गया जिसने उनके करियर और निजी जीवन को गहराई से प्रभावित किया। हम बात कर रहे हैं मशहूर कॉमेडियन महमूद की बहन मीनू मुमताज की, जिनकी कहानी संघर्ष, सफलता, विवाद और अंत में एक भावुक मोड़ से भरी हुई है।

विवाद जिसने मीनू मुमताज के करियर पर छोड़ी गहरी छाप

1950 के दशक में जब भारतीय समाज की सोच काफी रूढ़िवादी थी, मीनू मुमताज एक म्यूजिक वीडियो में अपने ही भाई महमूद के साथ रोमांटिक सीन करते हुए नजर आईं। यह दृश्य फिल्म हावड़ा ब्रिज के एक गाने "गोरा रंग चुनरिया काली" में था। इस सीन को लेकर दर्शकों में जबरदस्त नाराजगी देखने को मिली। लोग इस पर इतने आक्रोशित हो गए कि मीनू और महमूद दोनों को फिल्मों से बायकॉट करने की मांग उठने लगी। यह विवाद मीनू के लिए एक कठिन मोड़ साबित हुआ, हालांकि उन्होंने काम करना नहीं छोड़ा और धीरे-धीरे इस मामले को समय के साथ भुला दिया गया।

एक परिवार की जिम्मेदारी ने बना दिया कलाकार

मीनू मुमताज का असली नाम मलिकुन्निसा अली था। उनके पिता मुमताज अली खुद एक अच्छे डांसर थे, लेकिन शराब की लत ने उनका करियर और पारिवारिक जीवन दोनों तबाह कर दिए। इसके चलते घर की जिम्मेदारी मीनू के कंधों पर आ गई। मात्र 13 साल की उम्र में मीनू ने फिल्मों में कदम रखा। उनकी मां इस फैसले के खिलाफ थीं, लेकिन घर की मजबूरी ने उन्हें एक्टिंग और डांस के जरिए कमाने के लिए मजबूर कर दिया।

फिल्मों का सफर और दमदार भूमिकाएं

फिल्ममेकर नानूभाई वकील ने मीनू को 1955 में अपनी फिल्म सखी हकीम में पहला ब्रेक दिया। इसके बाद उन्होंने कागज के फूल, साहिब बीवी और गुलाम, चौदहवीं का चांद, घूंघट, और ताज महल जैसी फिल्मों में शानदार भूमिकाएं निभाईं। वे अपने समय की एक बेहतरीन डांसर और सपोर्टिंग एक्ट्रेस मानी जाती थीं।

शादी और एक्टिंग से विदाई

जब मीनू अपने करियर के चरम पर थीं, तभी उनके परिवार ने उनकी शादी फिल्म निर्देशक एस. अली अकबर से तय कर दी। शादी के बाद उन्होंने फिल्मों को अलविदा कह दिया। हालांकि उस समय उनके पास जहां आरा और पालकी जैसी फिल्में अधूरी थीं। उन्होंने वादा निभाते हुए दोनों फिल्मों की शूटिंग पूरी की और फिर एक्टिंग छोड़ दी।

प्रेग्नेंसी के दौरान की शूटिंग, फिल्म में दिखीं असल जिंदगी की झलक

फिल्म पालकी की शूटिंग के समय मीनू गर्भवती थीं। डायरेक्टर ने उनकी असल जिंदगी की स्थिति को फिल्म में भी दिखाया, जिससे मीनू का किरदार और अधिक प्रभावशाली बन गया। फिल्म को पूरा होने में चार साल लग गए और यह 1967 में रिलीज हुई।

विदेश में जीवन और बीमारी का सामना

शादी के बाद मीनू मुमताज विदेश में बस गईं और कनाडा के टोरंटो शहर में रहने लगीं। 2003 में उन्हें ब्रेन ट्यूमर का पता चला। एक दिन अचानक उनकी दृष्टि चली गई और याददाश्त भी कमज़ोर हो गई। ऑपरेशन के बाद उन्हें राहत तो मिली, लेकिन स्वास्थ्य पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाया। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दिन टोरंटो में ही बिताए।

23 अक्टूबर 2021 को दुनिया को कहा अलविदा

79 साल की उम्र में मीनू मुमताज का निधन हो गया। वह अपने पीछे एक ऐसा करियर छोड़ गईं, जिसमें संघर्ष, कंट्रोवर्सी, मेहनत और परिवार के लिए किए गए बलिदान की झलक साफ नजर आती है। उनकी कहानी बॉलीवुड के उस दौर का आईना है, जहां एक महिला कलाकार को न सिर्फ अभिनय बल्कि समाज की सोच से भी लड़ना पड़ता था।

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