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Up Kiran, Digital Desk: हर साल जब बारिश का मौसम आता है, तो जहां एक ओर देश के कई हिस्सों में लोग राहत की सांस लेते हैं, वहीं आंध्र प्रदेश के मुदिगुब्बा मंडल के दर्जनों गांवों के लिए यह मौसम आफत बनकर आता है। यहां के किसानों के लिए बारिश की बूंदें उम्मीद नहीं, बल्कि डर लेकर आती हैं। डर, अपनी महीनों की मेहनत और फसल को आंखों के सामने डूबते हुए देखने का।

सालों से चली आ रही इस गंभीर समस्या को अब सरकार के सामने मजबूती से उठाया गया है।

क्यों हर साल डूब जाते हैं ये गांव?

इस इलाके की बर्बादी का मुख्य कारण हैं यहां से बहने वाली मद्दिलरु और पापघ्नी नदियां। जब भी भारी बारिश होती है, ये दोनों नदियां उफान पर आ जाती हैं। लेकिन असली समस्या तब शुरू होती है, जब ओबुला देवरा चेरुवु में बने चेकडैम की वजह से पानी का उलटा बहाव (बैकवॉटर) शुरू हो जाता है।

इस बैकवॉटर की वजह से नदियों का पानी आसपास के गांवों और खेतों में घुस जाता है, जिससे किसानों की धान और मूंगफली जैसी फसलें पूरी तरह से बर्बाद हो जाती हैं। सिर्फ खेत ही नहीं, लोगों के घर भी पानी में डूब जाते हैं, जिससे उनका जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। मलाकवरिपल्ली, एडुलवरिपल्ली, रामापुरम और बांदलापल्ली जैसे कई गांव हर साल इस त्रासदी को झेलने के लिए मजबूर हैं।

सरकार तक पहुंची किसानों की आवाज

इलाके के लोगों और किसानों की इस पीड़ा को समझते हुए, जिला तेलुगु देशम पार्टी (TDP) के उपाध्यक्ष श्रीधर रेड्डी ने इस मुद्दे को सीधे सरकार के दरबार तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया। उन्होंने परेशान किसानों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ जाकर राज्य के सिंचाई और विपणन मंत्री, एन. मोहम्मद फारूक से मुलाकात की।

श्रीधर रेड्डी ने मंत्री को विस्तार से बताया कि कैसे यह चेकडैम विकास के बजाय विनाश का कारण बन गया है और इलाके के हजारों लोगों की रोजी-रोटी छीन रहा है। उन्होंने किसी अस्थायी समाधान की जगह, इस समस्या का एक स्थायी हल निकालने की मांग की।

मंत्री ने दिया भरोसे का मरहम

किसानों की दर्द भरी कहानी सुनकर मंत्री एन. मोहम्मद फारूक ने बहुत ही सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। उन्होंने प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया कि वह इस मामले को बहुत गंभीरता से ले रहे हैं। उन्होंने वादा किया कि वह जल्द ही सिंचाई विभाग के बड़े अधिकारियों के साथ इस पर चर्चा करेंगे और इस समस्या का एक स्थायी समाधान खोजने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे।

अब इलाके के हजारों किसान और लोग सरकार की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं कि कब उन्हें इस सालाना 'बाढ़ के श्राप' से मुक्ति मिलेगी और वे भी बारिश के मौसम में डर के साये में नहीं, बल्कि सुकून से जी पाएंगे।