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Up Kiran, Digital Desk: भारतीय टेस्ट टीम का मिडिल ऑर्डर लंबे समय से प्रतिभाशाली बल्लेबाज़ों से भरा रहा है, लेकिन इसमें स्थिरता की तलाश हमेशा से एक चुनौती बनी रही है। बीते कुछ वर्षों में इस अस्थिरता का सबसे बड़ा शिकार बने हैं हनुमा विहारी—वो बल्लेबाज़, जो कभी भारत की टेस्ट दीवार के रूप में पहचाने जाते थे।

एक समय था जब हनुमा विहारी को टीम इंडिया की संकटमोचक भूमिका में देखा जाता था—ऐसे खिलाड़ी के रूप में जो न केवल बैटिंग से स्थिरता लाते थे, बल्कि ज़रूरत पड़ने पर ऑफ स्पिन गेंदबाज़ी से भी योगदान देते थे। लेकिन अब हालात बिल्कुल अलग हैं। कोचिंग में हुए बदलाव और टीम संयोजन में आई नई सोच ने विहारी को टेस्ट टीम से लगभग बाहर ही कर दिया है।

नंबर 6 की दौड़ में पिछड़े विहारी
राहुल द्रविड़ के कोच बनने के बाद टीम मैनेजमेंट ने युवा खिलाड़ियों को मौका देने की रणनीति अपनाई और श्रेयस अय्यर को नंबर 6 पर प्राथमिकता दी गई। अय्यर ने शुरुआत में अच्छा प्रदर्शन भी किया, जिससे विहारी का स्थान सीमित होता गया। विहारी को धीरे-धीरे टेस्ट टीम से बाहर कर दिया गया और अब गौतम गंभीर की अगुवाई में तो मानो उनके लिए दरवाज़ा ही बंद हो गया है।

एक ऐतिहासिक पारी की अनदेखी
विहारी की सबसे यादगार पारी जनवरी 2021 में सिडनी टेस्ट में आई थी, जब उन्होंने हैमस्ट्रिंग में चोट के बावजूद 161 गेंदों तक डटे रहकर मैच को ड्रॉ कराया था। यह पारी न सिर्फ भारतीय क्रिकेट के लिए प्रेरणादायक थी, बल्कि सीरीज़ में भारत की जीत का रास्ता भी इसी से खुला। लेकिन समय के साथ उस बलिदान और जज़्बे को भुला दिया गया।

वह पारी एक उदाहरण थी कि कैसे एक खिलाड़ी नायक बन सकता है, भले ही रन कम हों। उन्होंने न सिर्फ गेंदबाज़ों को थकाया बल्कि फील्डिंग साइड को मानसिक रूप से भी झकझोर दिया।

घरेलू क्रिकेट में अब भी चमक बरकरार
हनुमा विहारी का घरेलू प्रदर्शन आज भी बेहद मजबूत है। फर्स्ट क्लास क्रिकेट में उन्होंने 49.92 की औसत से करीब 9,600 रन बनाए हैं, जिसमें 24 शतक और 51 अर्धशतक शामिल हैं। उनका सर्वश्रेष्ठ स्कोर नाबाद 302 रन है, जो उनकी तकनीकी क्षमता और धैर्य का प्रमाण है।

लेकिन राष्ट्रीय टीम में वापसी की राह कठिन होती जा रही है। उन्होंने अपना आखिरी टेस्ट जुलाई 2022 में इंग्लैंड के खिलाफ बर्मिंघम में खेला था, जिसमें वह प्रभावशाली प्रदर्शन नहीं कर सके।

क्यों नहीं बन रही जगह?
टीम इंडिया का मिडिल ऑर्डर अब कई नामों से भरा पड़ा है—श्रेयस अय्यर, केएल राहुल, ऋषभ पंत की संभावित वापसी और अब युवा चेहरों को मौके देने की नीति। ऐसे में 31 वर्षीय विहारी के लिए जगह बनाना चुनौतीपूर्ण है।

विहारी जैसे खिलाड़ी, जो तकनीक और धैर्य में माहिर हैं, टेस्ट क्रिकेट के पारंपरिक स्वरूप के लिए आदर्श होते हैं। लेकिन मौजूदा समय में टीम मैनेजमेंट बहुआयामी खिलाड़ियों और आक्रामक खेलने की सोच को प्राथमिकता दे रही है, जिसमें विहारी फिट नहीं बैठते दिखाई दे रहे।

 

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