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Up Kiran Digital Desk: एक वक्त था जब पाकिस्तानी सेना को दक्षिण एशिया की सबसे पेशेवर और ताकतवर सेनाओं में गिना जाता था। भारत से बंटवारे के बाद बनी इस सेना ने ब्रिटिश इंडियन आर्मी की तर्ज पर संगठन और अनुशासन को अपनाया था। मगर समय के साथ यह सेना सिर्फ एक सुरक्षा बल नहीं रही, बल्कि धीरे-धीरे यह राजनीति और धर्म के एजेंडे का सबसे अहम औजार बन गई। आईये जानते हैं पाकिस्तान कैसे ब्रेन वाश किया जाता है।
जब पाकिस्तानी सेना थी एक प्रोफेशनल संस्था
1947 में भारत-पाक विभाजन के साथ ही पाकिस्तानी सेना का गठन हुआ। शुरू में इसका आधार पूरी तरह ब्रिटिश सैन्य मॉडल पर था।
इस दौर में धर्म, सेना के प्रशिक्षण और संचालन में कहीं भी प्रमुख कारक नहीं था। पहले दो दशकों तक सेना ने खुद को राजनीतिक हस्तक्षेप से दूर रखने की कोशिश की। मगर पाकिस्तान का निर्माण एक धार्मिक राष्ट्र के तौर पर हुआ था और यही विचार धीरे-धीरे सेना में भी जड़ें जमाने लगा।
पाकिस्तान की सेना में कट्टरता के जनक कौन
1977 में एक तख्तापलट ने पाकिस्तान के राजनीतिक और सैन्य संतुलन को बदल कर रख दिया। जनरल जिया-उल-हक ने प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को अपदस्थ कर सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया।
फिर शुरू हुई एक आधिकारिक इस्लामीकरण की नीति — जिसके तहत न केवल समाज, बल्कि सेना को भी धार्मिक रंग में रंगा जाने लगा। ये कदम केवल धार्मिक नहीं था, बल्कि राजनीतिक नियंत्रण और वैधता पाने का साधन भी था।
जनरल जिया के दौर में सेना के ट्रेनिंग कैंपों में मौलवियों की तैनाती शुरू हुई। सैनिकों को काफिरों और इस्लामी दुश्मनों के खिलाफ तैयार किया जाने लगा। भारत-विरोधी प्रचार को धार्मिक जिहाद का रूप दे दिया गया।
पाकिस्तान में आतंकी संगठन कई भोले भाले लोगों को पकड़ता, फिर बुरे काम पर अच्छाई का लेबल लगा उकसाता और मरने के बाद जन्नत में हूरों (अप्सराएं) की मिलने की बात बताता है। ऐसे ही ब्रेनवाश वहां किया जाता है।
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