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सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दो दिनों में तीन अलग-अलग मामलों में अपनी महत्वपूर्ण राय दी है, जो भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमा और जिम्मेदारियों पर लोगों को एक स्पष्ट संदेश देती है।

पहले मामले में, कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की आज़ादी की रक्षा होती है, लेकिन यह सीमित होती है जब यह किसी की गरिमा को ठेस पहुंचाए या सामाजिक सौहार्द को बिगाड़े। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आज़ादी का मतलब यह नहीं कि आप किसी की व्यक्तिगत भावनाओं को चोट पहुंचाएं।

दूसरे मामले में, कोर्ट ने सोशल मीडिया पर फैलाए गए नकली खबरों और अफवाहों पर कड़ी चेतावनी दी। न्यायालय ने कहा कि झूठी जानकारी फैलाकर समाज में दहशत फैलाना कानून के खिलाफ है और ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।

तीसरे मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पत्रकारिता और मीडिया को निष्पक्ष और जिम्मेदार रहना चाहिए। फर्जी खबरें और पक्षपाती रिपोर्टिंग लोकतंत्र के लिए खतरा हैं। मीडिया को सत्य और तथ्य पर आधारित खबरें ही प्रकाशित करनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट की तीनों बेंचों ने मिलकर यह संदेश दिया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जरूरी है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कोई भी अनियंत्रित और गैर-जिम्मेदार बयान दे सकता है। कानून की सीमा में रहते हुए ही अपनी बात रखनी चाहिए।

यह फैसले वर्तमान डिजिटल युग में खास तौर पर महत्वपूर्ण हैं, जहां सोशल मीडिया पर सूचना तेजी से फैलती है। कोर्ट ने सभी नागरिकों से अपील की है कि वे सचेत और जिम्मेदार बने।

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