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Up Kiran, Digital Desk: उत्तराखंड के हरे-भरे पहाड़ी इलाकों में बलखाती संकरी सड़कों से गुजरना अब सिर्फ जोखिम भरा ही नहीं बल्कि महंगा भी हो गया है। यह खबर उन हजारों वाहन चालकों के लिए बुरी है जो रोज़ इन घने जंगलों से होकर गुजरते हैं। वन विभाग ने अब इन मार्गों पर लगने वाले चार्ज को बढ़ाने का फैसला लिया है। यह फैसला न केवल स्थानीय लोगों की दिनचर्या को प्रभावित करेगा बल्कि उन व्यवसायिक गतिविधियों पर भी असर डालेगा जो इन जंगलों के रास्ते से होकर गुजरती हैं।
वन विभाग के ताज़ा आदेश के अनुसार अब मोटर मार्गों पर वाहन चलाना पहले से कहीं ज्यादा खर्चीला हो गया है। प्रदेश के लगभग हर कोने में फैले इन रिजर्व फॉरेस्ट क्षेत्रों से होकर गुजरने वाले रास्तों पर 'संधारण शुल्क' यानी रख-रखाव के नाम पर वसूला जाने वाला शुल्क 38 फीसदी तक बढ़ा दिया गया है। यह वृद्धि सीधे तौर पर लालढांग से चिल्लरखाल जैसे मार्गों पर नियमित रूप से चलने वाले वाहन चालकों की जेब पर असर डालेगी।
उत्तराखंड की पहाड़ियों में दर्जनों नहीं बल्कि हजारों ऐसे मोटर मार्ग हैं जो घने जंगलों से होकर गुजरते हैं। इन सड़कों के किनारे बसा हर पेड़ हर मोड़ और हर पुल जैसे सालों की यादें समेटे खड़ा है। इन रास्तों का निर्माण और रखरखाव वन विभाग की ज़िम्मेदारी है। लेकिन अब इसी रखरखाव की कीमत आम आदमी को चुकानी पड़ेगी।
नदी घाटियों में खनन कार्य से लेकर रोज़मर्रा के सामान की ढुलाई तक अधिकतर भारी वाहन इन्हीं वन मार्गों पर निर्भर हैं। और अब इन रास्तों पर गुजरना जेब पर भारी पड़ेगा।
वन विभाग ने एक नई शुल्क लिस्ट जारी की है जो इस तरह है:
वाणिज्यिक उपयोग वाले भारी वाहन: 410 रुपये प्रति फेरा – ये वे ट्रक हैं जो सीमेंट लोहा और भारी सामग्री ढोते हुए इन पथरीले फिसलन भरे रास्तों से गुजरते हैं जैसे पहाड़ की सांसों को अपने पहियों तले कुचलते हुए।
खाद्य सामग्री लाने वाले बड़े वाहन: 180 रुपये – अनाज सब्जियां और जीवन का हर ज़रूरी सामान लेकर आने वाले ये वाहन अब हर चक्कर के साथ महंगे होते जाएंगे।
प्राइवेट कार: 70 रुपये – उन परिवारों के लिए जो सैर-सपाटे या जरूरी कामों से इन रास्तों को पार करते हैं अब हर मोड़ पर जेब पर असर होगा।
बस और पिकअप वाहन: 70 रुपये – गांवों को शहरों से जोड़ने वाली ये बसें और छोटे ट्रांसपोर्ट वाहन जो सुबह की धुंध और शाम के अंधेरे में भी चलते हैं अब हर सफर के साथ ज्यादा खर्च उठाएंगे।
कॉमर्शियल सवारी वाहन: 140 रुपये – टैक्सी और मैक्स जैसी गाड़ियां जो यात्रियों को पहाड़ के एक छोर से दूसरे तक पहुंचाती हैं अब हर फेरे पर ज्यादा शुल्क देंगी।
दोपहिया वाहन: 15 रुपये – युवाओं की आवाजाही का सबसे सरल साधन अब यह भी पूरी तरह ‘मुफ्त’ नहीं रहा।
निजी ट्रैक्टर: 180 रुपये और व्यवसायिक ट्रैक्टर: 240 रुपये – खेती-बाड़ी के इन भरोसेमंद साथी ट्रैक्टरों को भी अब हर चक्कर पर अपनी मेहनत की कीमत ज्यादा चुकानी पड़ेगी।
भैंसा बग्गी: 50 रुपये – जो कभी एक साधारण गांव की पहचान होती थी अब वह भी शुल्क के दायरे में आ गई है।
इन बढ़े हुए शुल्कों से साफ है कि जिन लोगों को रोज़ इन रास्तों पर आना-जाना होता है उनके लिए अब हर सफर सिर्फ एक दूरी नहीं बल्कि एक खर्च बन गया है। पहाड़ की ख़ामोशी को चीरते हुए चलने वाले इन वाहनों के लिए अब हर पहाड़ी मोड़ एक नया बोझ लेकर आएगा। यह फैसला जहां वन विभाग के लिए संसाधन जुटाने का एक तरीका हो सकता है वहीं आम लोगों के लिए यह एक और आर्थिक चुनौती बनकर उभरा है।
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