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Up Kiran, Digital News: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बड़े फैसले के तहत सोमवार को एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए जिसके तहत प्रिस्क्रिप्शन वाली दवाओं की कीमतों में 59% की कटौती का लक्ष्य तय किया गया है। इस आदेश का मकसद अमेरिकी मरीजों को सस्ती दवाएं उपलब्ध कराना है मगर इसका असर वैश्विक दवा उद्योग पर गहराई से पड़ सकता है खासकर भारत जैसे देशों पर।
ट्रंप का फैसला: क्या बदलेगा अमेरिका में
राष्ट्रपति ट्रंप ने सोमवार सुबह एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि हम बराबरी करने जा रहे हैं... हम वही भुगतान करेंगे जो यूरोप भुगतान करता है। ट्रंप प्रशासन ने दवा कंपनियों को 30 दिनों की समयसीमा दी है ताकि वे सरकार के साथ कीमतों को लेकर समझौते पर पहुंचें। यदि यह बातचीत विफल होती है तो सरकार एक नया नियम लागू करेगी जो दवाओं की कीमतों को अन्य देशों की कम कीमतों से जोड़ेगा।
स्वास्थ्य विभाग को रॉबर्ट एफ कैनेडी जूनियर की अगुआई में नई मूल्य निर्धारण नीति तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। यह फैसला अमेरिका के मेडिकेयर कार्यक्रम से जुड़ा है जिसके अंतर्गत लगभग 70 मिलियन बुजुर्ग अमेरिकी आते हैं। यह कार्यक्रम हर साल अरबों डॉलर की दवाएं खरीदता है। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि इस आदेश का प्रभाव निजी बीमा लेने वाले अमेरिकियों पर क्या पड़ेगा।
भारत की चिंता और बढ़ेंगी कीमतें
इस आदेश का भारत पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) की ताज़ा रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि अगर अमेरिका में दवाओं की कीमतें घटती हैं तो दवा कंपनियां अन्य बाजारों खासकर भारत जैसे विकासशील देशों में कीमतें बढ़ाकर घाटा वसूलने की कोशिश करेंगी।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन कंपनियों द्वारा पेटेंट कानूनों को सख्त करने का दबाव डाला जा सकता है। ऐसा होने पर भारत की जेनेरिक दवा उद्योग को झटका लग सकता है और लाखों मरीजों को महंगी दवाएं खरीदनी पड़ सकती हैं।
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