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chamoli avalanche: चमोली जिले के माणा गांव के नजदीक एक कड़ाके की ठंड वाली सुबह थी। 10,500 फीट की ऊंचाई पर मजदूरों का एक दल काम कर रहा था, जब अचानक हिमस्खलन ने उनके आश्रय को तबाह कर दिया। मौत सामने खड़ी थी, मगर 23 लोगों के इस दल के पास बस एक लोडर और अपनी हिम्मत थी।

ये लोग नंगे पैर सिर्फ बनियान पहने बर्फीली हवाओं और गहरे हिमखंडों के बीच जान बचाने के लिए भाग पड़े। मशीन के ट्रैक को फॉलो करते हुए, चार किलोमीटर तक ये मजदूर माइनस डिग्री तापमान में भागते रहे और अंततः बीआरओ (सीमा सड़क संगठन) के कैंप तक पहुंचने में कामयाब हुए।

रास्ते की समझ ने बचाई जान

28 वर्षीय लड्डू कुमार पंडित जो उन मजदूरों में से एक थे। अचानक हिमस्खलन की गड़गड़ाहट से जाग गए। उन्होंने आनन फानन स्थिति को समझा और लोडिंग वाहन की ओर दौड़ पड़े, जो आमतौर पर बर्फ और मलबा हटाने के लिए उपयोग किया जाता था।

उन्होंने कहा कि ऐसा लग रहा था जैसे मौत हमारा पीछा कर रही थी। उन्होंने मशीन को स्टार्ट किया, जिससे बर्फ के बीच एक नाजुक रास्ता बन गया। यह भागने का एकमात्र मौका था। मजदूरों का समूह मशीन के ट्रैक को फॉलो करते हुए भागने लगा।

मजदूरों के बचने की वजह सिर्फ तेजी से भागना नहीं था, बल्कि वे जानते थे कि उन्हें जाना कहां है। धीरज और प्रसाद बद्रीनाथ क्षेत्र में दो वर्ष तक कार्य कर चुके थे। वे पहाड़ों के रास्तों और दिशा का अंदाजा रखते थे। उनमें से एक ने कहा कि यही एकमात्र चीज थी जिसने हमें घबराने से रोका। हमें ठीक से पता था कि किस दिशा में भागना है। डर तो था मगर हमने अपने फैसले पर दोबारा विचार नहीं किया।

बता दें कि ये मजदूर लगभग दो घंटे तक माइनस डिग्री तापमान में दौड़ते रहे। तेज हवाएं, बर्फीले रास्ते और जमे हुए पैर—इन सबके बावजूद, उनकी इच्छाशक्ति ने उन्हें बचा लिया।