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बदबूदार कमरा और असहयोग का आलम
विनोद राय की किताब बताती है कि जब उनकी टीम ने कोयला मंत्रालय से घोटाले से जुड़ी फाइलें मांगीं, तो उन्हें जांच के लिए एक ऐसी जगह दी गई, जो किसी कबाड़खाने से कम नहीं थी. वह एक "बदबूदार, घुटन भरा कमरा" था, जिसमें फाइलें बेतरतीब ढंग से फेंकी हुई थीं. यह इस बात का सीधा संकेत था कि सरकार जांच में सहयोग करने के मूड में बिल्कुल नहीं थी.
कैग की टीम ने उस मुश्किल हालात में भी हार नहीं मानी और एक-एक फाइल को खंगालकर घोटाले के सबूत इकट्ठे किए.
जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दी 'चुनौती'
किताब का सबसे चौंकाने वाला खुलासा तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और विनोद राय के बीच हुए सीधे टकराव का है. जब कैग ने अपनी रिपोर्ट में यह कहा कि कोयला खदानों की नीलामी न करने से देश को 1.86 लाख करोड़ रुपये का अनुमानित नुकसान (presumptive loss) हुआ है, तो प्रधानमंत्री सिंह ने इस पर सख्त आपत्ति जताई.
मनमोहन सिंह ने विनोद राय से मुलाकात में सीधे-सीधे कैग के अधिकार क्षेत्र पर ही सवाल उठा दिया. उन्होंने तर्क दिया कि "सरकार की नीति (पॉलिसी) पर सवाल उठाने का अधिकार कैग को नहीं है." उनका कहना था कि खदानों को नीलाम करना या न करना सरकार का नीतिगत फैसला था, जिसकी ऑडिट कैग नहीं कर सकता.
विनोद राय का करारा जवाब: इस पर विनोद राय ने प्रधानमंत्री को जो जवाब दिया, वह ऐतिहासिक बन गया. उन्होंने कहा, "सर, हम आपकी नीति पर सवाल नहीं उठा रहे हैं. हम उस नीति को लागू करने के तरीके और उसके नतीजे (outcome) की ऑडिट कर रहे हैं, जिससे देश के खजाने को भारी नुकसान हुआ." कैग ने साफ किया कि एक राष्ट्रीय संपत्ति को बिना किसी पारदर्शी प्रक्रिया के बांट देना, सरकारी नुकसान है और इसकी जांच करना उनका संवैधानिक अधिकार है.
क्या था कोयला घोटाला: यह घोटाला 2004 से 2009 के बीच हुआ था, जब UPA सरकार ने देश की सैकड़ों कोयला खदानों (कोल ब्लॉक्स) को निजी कंपनियों को बिना किसी नीलामी के, 'पहले आओ, पहले पाओ' के आधार पर बांट दिया था. इससे सरकारी खजाने को भारी नुकसान पहुंचा, जबकि निजी कंपनियों ने मोटा मुनाफा कमाया.
कैग की इस रिपोर्ट ने देश की राजनीति में भूचाल ला दिया था. इस रिपोर्ट का ही असर था कि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने 214 कोल ब्लॉक्स के आवंटन को अवैध बताते हुए रद्द कर दिया था. विनोद राय की यह किताब इस ऐतिहासिक जांच की अंदर की कहानी बयान करती है.
 
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