
Up Kiran, Digital Desk: 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को एक बार फिर चरम पर पहुंचा दिया है। इस हमले में 26 निर्दोष नागरिकों की मौत ने पूरे देश को झकझोर दिया, और भारत ने साफ कर दिया कि वह इस हमले को लेकर किसी भी तरह की ढील नहीं देने वाला। भारत का रुख इस बार सख्त है—कूटनीतिक भी और रणनीतिक भी।
इसी पृष्ठभूमि में अब अमेरिका ने आधिकारिक रूप से हस्तक्षेप किया है। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने भारत और पाकिस्तान दोनों के शीर्ष नेताओं से बात की है और दक्षिण एशिया में शांति बनाए रखने की अपील की है। लेकिन सबसे अहम बात यह है कि अमेरिका ने दो टूक कहा है—वह आतंकवाद के खिलाफ भारत के साथ खड़ा है।
अमेरिका ने भारत को दिया भरोसा: “हम आतंकवाद के खिलाफ आपके साथ हैं”
अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर से बात करते हुए पहलगाम हमले को 'भयानक और अमानवीय' करार दिया। उन्होंने हमले में मारे गए लोगों के प्रति गहरी संवेदना जताई और यह स्पष्ट कहा कि अमेरिका आतंकवाद के खिलाफ भारत के प्रयासों में उसका साथ देगा।
रुबियो ने जयशंकर से बातचीत में यह भी कहा कि इस्लामाबाद को इस हमले की जांच में पूरी तरह सहयोग करना चाहिए। यह एक कड़ा बयान था, जो दर्शाता है कि अमेरिका की ओर से पाकिस्तान पर दबाव डाला जा रहा है, भले ही अमेरिका दोनों देशों को शांति की सलाह देता रहे।
साथ ही रुबियो ने यह भी जोड़ दिया कि भारत को भी क्षेत्रीय शांति बनाए रखने के लिए संवाद और संयम की नीति अपनानी चाहिए। यह अमेरिका की पुरानी नीति रही है—आतंकवाद के खिलाफ समर्थन और क्षेत्रीय शांति के लिए संतुलन बनाए रखना।
पाकिस्तान का जवाब: शहबाज शरीफ ने भारत पर आरोपों की झड़ी लगा दी
रुबियो ने केवल भारत से नहीं, बल्कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से भी बातचीत की। पाकिस्तान की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक, शरीफ ने अमेरिका के सामने यह दावा किया कि भारत उकसाने वाली कार्रवाई कर रहा है और क्षेत्रीय तनाव बढ़ा रहा है।
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान इस क्षेत्र में शांति चाहता है लेकिन भारत के आक्रामक कदमों की वजह से हालात बिगड़ रहे हैं। यह बयान एक तरह से जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की कोशिश थी, जबकि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत ने पर्याप्त सबूत पेश किए हैं कि इस हमले की जड़ें पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से जुड़ी हैं।
यह बात भी सामने आई कि शहबाज शरीफ ने बातचीत में अमेरिका से यह भी आग्रह किया कि वह भारत को 'भड़काऊ बयानबाज़ी' से रोके।
सिंधु जल संधि का मुद्दा फिर उठा: पाकिस्तान की कूटनीतिक चाल
भारत के कड़े रुख और सिंधु जल संधि को लेकर पुनर्विचार की खबरों ने पाकिस्तान में बेचैनी बढ़ा दी है। इसी कारण शहबाज शरीफ ने अमेरिकी विदेश मंत्री से इस संधि का मुद्दा भी उठाया।
उन्होंने दावा किया कि सिंधु जल संधि पाकिस्तान के 24 करोड़ लोगों की जीवनरेखा है और इसमें किसी भी पक्ष को एकतरफा तरीके से पीछे हटने का अधिकार नहीं है। यहां पाकिस्तान की मंशा साफ दिख रही थी—वह अमेरिका को भारत पर दबाव डालने के लिए इस्तेमाल करना चाहता है।
लेकिन यह चाल कितनी सफल होगी, यह कहना मुश्किल है, क्योंकि अमेरिका का झुकाव इस बार पूरी तरह भारत के आतंकवाद विरोधी रुख के साथ दिख रहा है।
अमेरिका की मध्यस्थता या रणनीतिक सहानुभूति?
अमेरिका का यह हस्तक्षेप एक बार फिर यह सवाल खड़ा करता है—क्या वॉशिंगटन सिर्फ शांति की मध्यस्थता कर रहा है या रणनीतिक रूप से भारत के करीब खड़ा होकर पाकिस्तान पर दबाव बना रहा है?
हकीकत यह है कि अमेरिका को दक्षिण एशिया में स्थिरता चाहिए। उसे चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए भारत की ज़रूरत है, और आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक नेतृत्व के लिए भी उसे भारत की भूमिका स्वीकार करनी पड़ रही है।
ऐसे में पाकिस्तान की स्थिति कहीं न कहीं कमजोर हो जाती है—चाहे वो आतंकवाद पर जवाब देने की बात हो, या सिंधु जल संधि जैसे मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय सहानुभूति पाने की कोशिश।
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