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लखनऊ। वैसे तो शिव कुमार यूपी वन निगम में प्रभागीय लौंगिंग प्रबंधक नजीबाबाद के पद पर तैनात हैं। पर उनके चर्चे प्रदेश भर के वन निगम के अधिकारियों और कर्मचारियों में है। इसकी वजह भी है, क्योंकि किन्हीं दस्तावेजों में उनका नाम शिव कुमार मीना और किन्हीं दस्तावेजों में शिव कुमार मीणा दर्ज है। अब यह विवेचना का विषय है कि शिव कुमार का सरनेम वास्तव में 'मीना' या 'मीणा'। आप भी सोच रहे होंगे कि ये मीना और मीणा में क्या रखा है तो आपको बता दें कि सारा खेल इसी सरनेम के अंदर ही छिपा है, जो हम आपको बताने जा रहे हैं।

विभागीय जानकारों का कहना है कि साल 1985 में शिव कुमार की वन निगम में नियुक्ति हुई। उस समय दिए गए दस्तावेजों में उन्हें शिव कुमार कहकर संबोधित किया गया है, जबकि ताजा मामलों में अब उनका सरनेम मीणा कहकर संबोधित किया जाता है। सरनेम के अंतर की वजह भी जान लीजिए। दरअसल, शिव कुमार मूलत: राजस्थान के रहने वाले हैं। जहां मीना जाति एसटी कैटेगरी में आती है और मीणा जाति एससी कैटेगरी में आती है। राजस्थान में अक्सर मीना और मीणा को लेकर विवाद होता रहता है। संघ लोक सेवा आयोग द्वारा जारी विज्ञप्तियों में मीना और मीणा को लेकर स्पष्ट किया गया है कि मीना जाति अनुसूचित जन जाति के तहत आती है।

फिलहाल असली बात यह है कि शिव कुमार ने यूपी वन निगम में नियुक्ति के समय खुद को एसटी घोषित किया है और उससे संबंधित कागजात भी राजस्थान सरकार के ही लगाए थे। जबकि जानकारों का कहना है कि यदि राजस्थान का कोई व्यक्ति यूपी में जॉब के लिए अप्लाई करता है तो वह जनरल कैटेगरी की तरह ट्रीट किया जाएगा। भले ही वह विस्थापित हो। उसके बावजूद शिव कुमार की नियुक्ति एसटी कैटेगरी के तहत कर दी गई। हालांकि विभागीय जानकारों की मानें तो शिव कुमार की नियुक्ति पहले एससी कैटेगरी के तहत हुई थी। उन पर अपनी सेवा पुस्तिका से छेड़छाड़ का भी आरोप लगाया जाता है। विभाग में यह भी चर्चा ​है कि उनके सेवा से संबंधी अ​भिलेख कार्यालय में मौजूद नहीं है। शिव कुमार से इस सिलसिले में अभिलेख तलब किया गया तो उन्होंने राजस्थान सरकार का एसटी कैटेगरी का प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया था। पूरे मामले में साफ है कि शिव कुमार की नियुक्ति ही गलत तरीके से हुई थी। कायदे कानूनों की कसौटी पर उनकी नियुक्ति न तब खरी थी और न अब। इसके बावजूद विभाग के आला अफसर मौन हैं। यह भी विवेचना का विषय हो सकता है।

यूपी वन विभाग के लखनऊ स्थित मुख्यालय पर तैनात सुजोय बैनर्जी, महाप्रबंधक कार्मिक का कहना है कि वह प्रकरण को दिखवा रहे हैं। इसके लिए उन्होंने महाप्रबंधक मेरठ से मामले की जानकारी मांगी है।

इसी तरह का एक और मामला यूपी वन निगम में वर्षों से चर्चा में है। मौजूदा वन धन प्रभारी दविंदर/देवेंदर सिंह के नाम को लेकर भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। उन पर जन्मतिथि में भी हेराफेरी का आरोप है। शासन स्तर से उनके खिलाफ जांच चल रही है। मामला एंटी करप्शन को भी भेजा गया है और उनकी आयु के संबंध केजीएमयू लखनउ की जांच रिपोर्ट प्रतीक्षित है।

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