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Up Kiran , Digital Desk: उत्तराखंड एक तरफ प्रति व्यक्ति आय और सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) में राष्ट्रीय औसत से बेहतर प्रदर्शन कर रहा है तो दूसरी तरफ राज्य के पहाड़ी जिलों में सामाजिक-आर्थिक विषमता और आधारभूत संरचना की कमी की हकीकत उसे पीछे खींच रही है। राज्य सरकार अब 16वें वित्त आयोग के सामने यह दोहरी तस्वीर रखकर लगभग 44000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त सहायता की मांग कर रही है।
15वें वित्त आयोग से उत्तराखंड को ₹85000 करोड़ से अधिक की वित्तीय सहायता प्राप्त हुई थी। अब माना जा रहा है कि आगामी पांच वर्षों के लिए यह आंकड़ा ₹90000 करोड़ को पार कर सकता है। CM पुष्कर सिंह धामी ने आयोग को राज्य का विस्तृत मेमोरंडम पहले ही सौंप दिया है।
विकास की आकांक्षा बनाम पर्यावरणीय अवरोध
राज्य का 71% हिस्सा वन क्षेत्र है जिससे विकास परियोजनाओं के लिए भूमि मिलना चुनौतीपूर्ण हो गया है। हरिद्वार ऊधमसिंह नगर नैनीताल और देहरादून जैसे मैदानी जिलों को छोड़ दें तो उत्तराखंड के शेष नौ जिले – जो मध्य और उच्च हिमालयी क्षेत्र में आते हैं – पर्यटन जलविद्युत वानिकी और जैविक खेती जैसी परियोजनाओं का केंद्र हैं। लेकिन यहीं विकास सबसे अधिक अवरुद्ध है।
राज्य सरकार ने 45% से अधिक सघन वन क्षेत्र के आधार पर विशेष अनुदान की मांग की है। उत्तराखंड से देश को हर साल ₹3 लाख करोड़ की पर्यावरणीय सेवाएं मिलती हैं जिनमें से एक तिहाई सघन वनों से आती हैं। इसके बावजूद 16वें वित्त आयोग ने वन क्षेत्र के लिए वेटेज सिर्फ 10% रखा है जबकि राज्य इसे बढ़ाकर 20% करने की मांग कर रहा है।
राज्य की प्रमुख मांगें
विशेष अनुदान: पर्यावरणीय सेवाओं जल संरक्षण और वन क्षेत्र के संरक्षण के लिए
कोस्ट डिसेबिलिटी फैक्टर: पर्वतीय चुनौतियों के मद्देनज़र
जलविद्युत परियोजनाओं पर रोक से हुए नुकसान की भरपाई
फ्लोटिंग जनसंख्या (पर्यटकों और तीर्थयात्रियों) को ध्यान में रखते हुए अतिरिक्त सहायता
उद्योगों के लिए विशेष प्रोत्साहन और सहायक ढांचे का निर्माण
20 विभागों की योजनाओं के लिए ₹44000 करोड़ की वित्तीय सहायता
वित्त आयोग का नैनीताल दौरा
डॉ. अरविंद पनगढ़िया की अध्यक्षता में 16वें वित्त आयोग का दल आज अपने उत्तराखंड दौरे के तीसरे और अंतिम दिन नैनीताल पहुँचेगा। यह दौरा आयोग की संस्तुतियों की अंतिम रूपरेखा तैयार करने में अहम भूमिका निभाएगा जिसके आधार पर 2026-27 से शुरू होने वाले पांच सालों के लिए केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी तय होगी।
वास्तविक उत्तराखंड की झलक
जहां राज्य की शहरी और मैदानी क्षेत्रों में आर्थिक संकेतक बेहतर हो रहे हैं वहीं दूर-दराज़ के पहाड़ी क्षेत्रों में स्वास्थ्य शिक्षा परिवहन रोजगार और संचार जैसी बुनियादी सेवाएं अब भी सीमित हैं। उत्तराखंड की विकास गाथा तभी पूरी मानी जाएगी जब आंकड़ों की चकाचौंध से निकलकर यह योजनाएं हर गांव और हर घाटी तक पहुंचें।
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