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Up Kiran, Digital Desk: बिहार में हाल ही में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया पूरी हुई है, जिससे राज्य की राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। इस कदम के चलते जनता के बीच मतदाता पहचान और अधिकारों को लेकर कई सवाल उठने लगे हैं। AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने इस प्रक्रिया पर अपनी चिंता जाहिर की है। उनका मानना है कि यह कदम मुख्य रूप से गरीब मुस्लिम और दलित मतदाताओं को प्रभावित कर सकता है। उन्होंने कहा कि इन वर्गों के लिए वोटिंग एकमात्र हथियार है और इसे कमजोर करना राजनीतिक खेल का हिस्सा है।
क्या गरीब और कमजोर वर्गों का अधिकार खतरे में?
ओवैसी ने बताया कि वर्तमान में कुछ राजनीतिक दल, खासकर भाजपा, मतदाता सूची के इस पुनरीक्षण का इस्तेमाल धार्मिक आधार पर मतदाताओं को परेशान करने के लिए कर सकते हैं। उनका आरोप है कि इससे गरीब मुसलमान और दलित वर्ग असहाय महसूस कर सकते हैं क्योंकि उनका मतदान का अधिकार छिनने का डर बना रहेगा।
BJP का जवाब: लोकतंत्र के नियमों की रक्षा है मकसद
वहीं, भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता कुंतल कृष्ण ने ओवैसी की बातों को बेबुनियाद बताते हुए कहा कि यह प्रक्रिया पूरी तरह से लोकतांत्रिक और पारदर्शी है। उन्होंने जोर दिया कि मतदाता सूची का पुनरीक्षण चुनाव की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है। उनका कहना था कि यह लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
कुंतल कृष्ण ने यह भी कहा कि विपक्षी नेता अपने मतदाता सूची में नामों की स्थिति स्पष्ट करें। उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्षी नेता जनता को भ्रमित कर रहे हैं और असली मुद्दे से ध्यान भटका रहे हैं। उनका कहना था कि सरकार का मकसद केवल उन्हीं लोगों को मतदाता सूची से बाहर करना है जो कानूनी तौर पर मतदाता बनने के पात्र नहीं हैं।
मतदाता सूची पुनरीक्षण पर बहस बढ़ेगी या समाधान निकलेगा?
यह विवाद चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और न्यायिकता को लेकर बहस को और गहरा कर सकता है। मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण का उद्देश्य चुनाव में अवैध प्रविष्टियों को रोकना है, लेकिन इसे लेकर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप जारी हैं। आम जनता खासकर कमजोर वर्गों के बीच इस कदम के प्रभाव पर नजरें बनी हुई हैं।