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Up Kiran, Digital Desk: बिहार में विधानसभा चुनाव की वोटिंग 6 और 11 नवंबर को होनी है और परिणाम 14 नवंबर को आएंगे. चुनाव से पहले चुनाव आयोग की टीमें लगातार छापे मार रही हैं. आयोग का कहना है कि अब तक सत्तर करोड़ रुपये से अधिक नकदी के साथ शराब और अन्य सामान भी जब्त किए गए हैं. पहले भी कई चुनावों में बड़े पैमाने पर कैश पकड़ा गया था. लोकसभा चुनाव के समय भी करोड़ों रु. बरामद हुए थे. सवाल उठता है कि इतनी बड़ी रकम जब्त होने के बाद उसका क्या होता है. आइए जानें कि प्रक्रिया कैसी होती है और पैसे कहां रखे जाते हैं.

कैश कब और क्यों जब्त होता है

चुनाव के समय विशेष टीमें सक्रिय रहती हैं. उनका काम अवैध नकदी और शराब पर निगरानी रखना है. यदि किसी व्यक्ति के पास बड़ी मात्रा में नकदी मिलती है और वह इसका ठोस हिसाब नहीं दे पाता तो चेक कर के वह रकम जब्त कर ली जाती है. कानून व्यवस्था बनाए रखने और आजाद चुनाव सुनिश्चित करने के लिए यह कदम जरूरी माना जाता है. साथ ही भारतीय दंड संहिता और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के तहत मतदान के समय पैसों या शराब का वितरण अपराध है.

जब्त नकदी के साथ आगे क्या होता है

जिंदा कार्रवाई के बाद जब्त राशि की पूरी रिपोर्ट बनाकर मामलों को इनकम टैक्स विभाग या संबंधित अधिकारी के पास भेज दिया जाता है. आयकर विभाग स्रोत और उपयोग की जांच करता है. यदि नकदी किसी व्यापारी या सामान्य नागरिक की साबित हो जाती है और औचित्य दिखाया जा सकता है तो रकम लौटा दी जाती है. कई बार ऐसे सबूत नहीं मिलते. तब टैक्स और जुर्माने काटे जाते हैं और बची रकम वापस की जा सकती है. हर मामले की जांच अलग होती है और नियमों के अनुसार कार्रवाई होती है.

कब पैसा सरकारी खजाने में जाता है

यदि प्राथमिकी दर्ज होती है और मामला अदालतों तक जाता है तो कोर्ट प्रमाण के आधार पर फैसला करती है. अगर अदालत तय करती है कि जब्त राशि वोटरों को प्रभावित करने या खरीदने के इरादे से रखी जा रही थी तो उसे सरकारी खजाने में जमा कर दिया जाता है. मतलब यह कि किसी तरह का भ्रष्टाचार साबित होने पर पैसा वापस नहीं मिलता और वह राज्य को सौंपी जाती है.

जब्त शराब और नशे के पदार्थों का क्या होता है

नकदी के साथ अक्सर बड़ी मात्रा में शराब भी बरामद होती है. ऐसी शराब को पहले सरकारी गोदाम में रखा जाता है. बाद में नियमों के अनुसार इसे नष्ट या निपटान कर दिया जाता है. बाकी मादक पदार्थों के साथ भी यही कदम उठाए जाते हैं. इसका उद्देश्य चुनावी गलत प्रभाव को रोकना और पुनः उपयोग की सम्भावना खत्म करना होता है.