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Up Kiran, Digital Desk: महाराष्ट्र की राजनीति में आजकल बयानबाज़ी तेज़ हो गई है, ख़ासकर बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) के चुनावों को लेकर. बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद, उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना (यूबीटी) ने अपनी सहयोगी कांग्रेस पार्टी को एक अहम चेतावनी दी है. उनकी सीधी बात ये है कि अगर कांग्रेस बीएमसी चुनाव अकेले लड़ने की सोच रही है, तो उन्हें बिहार के नतीजों से सबक लेना चाहिए और 'अकेले चलने' की ग़लती नहीं करनी चाहिए.

क्यों मिली ये 'नसीहत'?

दरअसल, शिवसेना (यूबीटी) को लगता है कि बिहार में कांग्रेस ने जिन सीटों पर अकेले चुनाव लड़ा था, वहाँ उसका प्रदर्शन उम्मीद से काफ़ी कम रहा था. इस वजह से कहीं न कहीं महागठबंधन (जिसका कांग्रेस हिस्सा थी) को नुकसान उठाना पड़ा. इसी तर्ज़ पर, शिवसेना (यूबीटी) अब ये समझाना चाह रही है कि मुंबई जैसे महत्वपूर्ण बीएमसी चुनाव में 'अकेला चलो' की रणनीति ठीक नहीं होगी. उनका मानना है कि महाविकास अघाड़ी (MVA) के सभी घटक दलों - शिवसेना (यूबीटी), कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार गुट) - को मिलकर चुनाव लड़ना चाहिए.

बीएमसी चुनाव क्यों हैं इतने अहम?

मुंबई महानगरपालिका देश की सबसे अमीर नगरपालिकाओं में से एक है और दशकों से शिवसेना (जो अब अविभाजित थी) का यहाँ दबदबा रहा है. अब जबकि शिवसेना दो धड़ों में बँट गई है (शिंदे गुट और ठाकरे गुट), और बीजेपी भी इस पर कब्ज़ा करने के लिए पूरी कोशिश कर रही है, यह चुनाव ठाकरे गुट के लिए अपनी ताक़त दिखाने और मुंबई पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए बहुत ज़रूरी है. ऐसे में अगर MVA के तीनों दल मिलकर चुनाव लड़ते हैं, तो उनके जीतने की संभावना ज़्यादा होगी.

आगे क्या होगा?

हालांकि, कांग्रेस महाराष्ट्र में MVA का हिस्सा है, लेकिन कई मौकों पर उनके कुछ नेता अपनी पार्टी की ताक़त दिखाने और कुछ सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की बात करते रहते हैं. शिवसेना (यूबीटी) के इस ताज़ा बयान से अब कांग्रेस पर दबाव पड़ेगा कि वो गठबंधन के साथ अपनी रणनीति को लेकर साफ रहे. महाविकास अघाड़ी के तीनों नेताओं (उद्धव ठाकरे, शरद पवार, और कांग्रेस के आला नेता) को अब मिलकर एक साझा रणनीति बनानी होगी, ताकि वो मुंबई जैसे महत्वपूर्ण शहरी निकाय में सत्ता से दूर न रह जाएं.

कुल मिलाकर, महाराष्ट्र की सियासी शतरंज पर बीएमसी चुनाव से पहले की यह बिसात काफी दिलचस्प हो गई है. देखने वाली बात होगी कि क्या बिहार के नतीजों से सबक लेकर कांग्रेस गठबंधन की बात मानती है या फिर अपनी ही राह पर चलने की सोचती है.