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Up Kiran, Digital Desk: भारतीय शादियों की रौनक और ख़ूबसूरती उसकी रस्मों में बसी है। हल्दी-मेहंदी की महक से लेकर सात फेरों के पवित्र बंधन तक, हर रस्म का अपना एक गहरा और ख़ास मतलब होता है। इन्हीं में से एक सबसे सुंदर और यादगार रस्म है 'वरमाला' या 'जयमाला' की। बैंड-बाजा, शोर-शराबा, और सबकी निगाहें सिर्फ़ दूल्हा-दुल्हन पर टिकी होती हैं, जब वे एक-दूसरे को फूलों का हार पहनाने के लिए आगे बढ़ते हैं।

यह पल जितना मज़ेदार और छेड़छाड़ भरा होता है, उतना ही पवित्र भी। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस रस्म में हमेशा दुल्हन ही दूल्हे को पहले वरमाला क्यों पहनाती है? यह सिर्फ़ एक परंपरा नहीं है, इसके पीछे सदियों पुराना एक बहुत ही ख़ूबसूरत कारण छिपा है।

यह परंपरा जुड़ी है 'स्वयंवर' से

दुल्हन द्वारा पहले वरमाला पहनाने की यह रस्म आज की नहीं, बल्कि पौराणिक काल के 'स्वयंवर' की परंपरा से जुड़ी हुई है। प्राचीन काल में, जब कोई राजकुमारी विवाह योग्य हो जाती थी, तो उसके पिता स्वयंवर का आयोजन करते थे। इसमें कई राज्यों के राजकुमार और राजा हिस्सा लेने आते थे। उस समय, राजकुमारी अपनी इच्छा और सहमति से, अपने लिए योग्य वर चुनकर उसके गले में वरमाला डालकर उसका वरण करती थी।

यह वरमाला दुल्हन की तरफ़ से इस बात की सार्वजनिक घोषणा होती थी कि उसने सामने खड़े पुरुष को अपने जीवनसाथी के रूप में चुन लिया है और वह उसे स्वीकार करती है।

वरमाला का गहरा символизм

वरमाला की रस्म सिर्फ़ एक-दूसरे को हार पहनाने तक सीमित नहीं है। इसका हर पहलू एक गहरा अर्थ रखता है:

क्यों होती है दूल्हे को उठाने वाली छेड़छाड़?

आजकल वरमाला के समय दूल्हे के दोस्त और रिश्तेदार उसे ऊपर उठा लेते हैं ताकि दुल्हन आसानी से माला न पहना पाए। यह मज़ाक और छेड़छाड़ भी इसी परंपरा का एक मज़ेदार रूप है, जो यह दिखाता है कि दुल्हन को अपना वर पाने के लिए थोड़ी मशक्कत करनी पड़ती है, और यह पल पूरे माहौल को हल्का-फुल्का और यादगार बना देता है।

तो अगली बार जब आप किसी शादी में वरमाला की रस्म देखें, तो याद रखिएगा कि यह सिर्फ़ फूलों का आदान-प्रदान नहीं है, बल्कि यह सम्मान, स्वीकृति और बराबरी के उस वादे का प्रतीक है, जिस पर एक मज़बूत रिश्ते की नींव रखी जाती है।