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Up Kiran, Digital Desk: दुनिया की राजनीति में कुछ नेता ऐसे होते हैं, जिनके काम करने का तरीका सबसे अलग होता है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप उन्हीं में से एक हैं। उनकी कूटनीति सीधी, सपाट और अक्सर चौंकाने वाली होती है। आज एक बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि अगर डोनाल्ड ट्रंप, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के उलझे हुए मुद्दों को सुलझाने के लिए मुख्य वार्ताकार (Negotiator) बन जाएं, तो क्या होगा? और क्यों माना जा रहा है कि उनके आने से ये दोनों देश अपने आप लाइन पर आ जाएंगे (fall in line)?

चलिए, इस दिलचस्प संभावना को समझते हैं।

ट्रंप का 'अलग' स्टाइल ही है उनकी सबसे बड़ी ताकत

पारंपरिक डिप्लोमैट महीनों तक चाय पीते हुए, धीरे-धीरे बातचीत आगे बढ़ाते हैं। लेकिन ट्रंप का तरीका बिलकुल अलग है। वह सीधा हिसाब-किताब करते हैं - "आप हमारे लिए क्या करोगे, तो हम आपके लिए क्या करेंगे।"

कोई लाग-लपेट नहीं: वह घुमा-फिराकर बात नहीं करते। उनकी मांगें और धमकियां दोनों बहुत स्पष्ट होती हैं।

अप्रत्याशित (Unpredictable): कोई नहीं जानता कि वह अगला कदम क्या उठाएंगे। यह डर ही दूसरे देशों को सोचने पर मजबूर कर देता है।

सहायता को बनाया हथियार: ट्रंप यह बात बहुत अच्छे से जानते हैं कि पाकिस्तान जैसे देश अमेरिकी मदद पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं। वह इस मदद को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने पहले भी पाकिस्तान को दी जाने वाली अरबों डॉलर की मदद यह कहकर रोकी है कि "वे हमारे लिए कुछ नहीं करते।"

पाकिस्तान और अफगानिस्तान क्यों आएंगे लाइन पर?

यह ट्रंप के लिए कोई प्यार या सम्मान नहीं होगा, बल्कि यह उनकी 'मजबूरी' होगी।

पाकिस्तान का डर: पाकिस्तान जानता है कि अगर ट्रंप वार्ताकार बने, तो वह फिर से सैन्य और आर्थिक मदद रोकने की धमकी दे सकते हैं। ट्रंप का रिकॉर्ड देखते हुए, यह सिर्फ एक खोखली धमकी नहीं होगी। इसलिए, पाकिस्तान के पास उनकी बात मानने के अलावा ज्यादा विकल्प नहीं बचेंगे।

अफगानिस्तान की उलझन: अफगानिस्तान में तालिबान और अन्य गुटों के साथ शांति स्थापित करना एक बड़ी चुनौती है। ट्रंप किसी भी गुट से सीधे बात करने में संकोच नहीं करते, जैसा उन्होंने पहले भी किया है। यह बात बाकी पक्षों पर एक सीधा दबाव बनाती है कि अगर वे समझौते के लिए राजी नहीं हुए, तो ट्रंप उनसे किनारा करके दूसरों के साथ डील कर लेंगे।