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Up Kiran, Digital Desk: कल्पना कीजिए आप ट्रेन का इंतज़ार कर रहे हैं या सफर कर रहे हों और अचानक आपके कानों में वंदे मातर  की धुन सुनाई दे. यह कोई रिकॉर्डेड संगीत नहीं, बल्कि आपके साथ खड़े रेलवे अधिकारी और सहयात्री पूरे जोश और सम्मान के साथ इसे गा रहे हों. ऐसा ही कुछ अद्भुत नज़ारा उत्तर रेलवे के स्टेशनों और दफ्तरों में देखने को मिला, जब हमारे राष्ट्रगीत "वंदे मातरम" के 150 गौरवशाली वर्ष पूरे होने का जश्न मनाया गया.

यह सिर्फ एक सरकारी कार्यक्रम नहीं था, बल्कि एक ऐसा पल था जहाँ अधिकारी और आम जनता के बीच की दीवारें टूट गईं और सब एक सुर में 'माँ तुझे सलाम' कहते नज़र आए. उत्तर रेलवे के महाप्रबंधक शोभन चौधुरी की अगुवाई में, दिल्ली के बड़ौदा हाउस स्थित मुख्यालय से लेकर विभिन्न स्टेशनों और कार्यालयों तक, हर जगह माहौल देशभक्ति के रंग में रंगा हुआ था.

यात्रियों ने भी मिलाया सुर में सुर

इस आयोजन की सबसे खूबसूरत बात यह थी कि इसमें सिर्फ रेलवे कर्मचारी ही नहीं, बल्कि आम यात्री भी खुद को शामिल होने से रोक नहीं पाए. जब उन्होंने अधिकारियों को राष्ट्रगीत गाते देखा, तो वे भी रुक गए और उनके साथ गाने लगे. यह एक ऐसा दृश्य था जो दिखाता है कि "वंदे मातरम" सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि एक भावना है जो हर भारतीय को एक दूसरे से जोड़ती है.

महाप्रबंधक शोभन चौधुरी ने इस अवसर पर कहा, "वंदे मातरम हमारे स्वतंत्रता संग्राम का ऊर्जा स्रोत था. यह वो नारा था जिसने लाखों भारतीयों को देश के लिए अपनी जान कुर्बान करने की प्रेरणा दी. आज 150 साल बाद भी, जब हम इसे गाते हैं, तो हमारी रगों में वही जोश दौड़ जाता है."

क्यों इतना ख़ास है "वंदे मातरम"?

"वंदे मातरम" का सफर भारत की आज़ादी की लड़ाई का आइना है.

जन्म: इस अमर गीत की रचना 1870 के दशक में बंकिम चंद्र चट्टो-पाध्याय ने की थी. यह उनके प्रसिद्ध उपन्यास 'आनंदमठ' का हिस्सा बना.

पहली गूंज: इसे पहली बार 1896 में कांग्रेस के अधिवेशन में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने अपनी आवाज़ दी थी.

क्रांति का प्रतीक: जल्द ही, यह गीत ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बगावत का सबसे बड़ा प्रतीक बन गया. स्वतंत्रता सेनानी "वंदे मातरम" का जयघोष करते हुए फांसी के फंदे पर झूल जाते थे.

उत्तर रेलवे का यह प्रयास सिर्फ एक जश्न नहीं, बल्कि उस महान विरासत को सलाम करने और नई पीढ़ी को यह याद दिलाने का एक तरीका है कि हमारा राष्ट्रगीत सिर्फ एक गीत नहीं, बल्कि करोड़ों कुर्बानियों की कहानी है. जब ट्रेन की सीटी और पटरियों की खड़खड़ाहट के बीच "सुजलाम् सुफलाम्" के स्वर गूंजे, तो यह हर भारतीय के लिए एक गर्व का क्षण था.