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Up Kiran, Digital Desk: कैंसर सुनते ही मन में एक डर बैठ जाता है। ऐसा क्यों होता है? शायद इसलिए क्योंकि इस बीमारी को अक्सर मौत से जोड़कर देखा जाता है। लोगों की आम धारणा यही है कि एक बार कैंसर ने शरीर में दस्तक दे दी, तो वापसी की राह मुश्किल हो जाती है। हालांकि, ये पूरी तरह सच नहीं है।

हकीकत यह है कि अगर बीमारी की पहचान शुरुआती समय में हो जाए, तो इलाज के नतीजे कहीं बेहतर हो सकते हैं। मगर अफसोस की बात यह है कि ज्यादातर मामलों में कैंसर का पता तब चलता है जब स्थिति बिगड़ चुकी होती है।

तो सवाल यह उठता है कि आखिर बीमारी का पता पहले क्यों नहीं चल पाता?

आखिर इतनी देर क्यों लगती है पहचान में?

मुंबई के एक प्रतिष्ठित कैंसर एक्सपर्ट डॉ. तरंग कृष्णा बताते हैं कि कैंसर अचानक से आखिरी स्टेज पर नहीं पहुंचता। शरीर पहले ही कुछ संकेत देने लगता है। दिक्कत ये है कि उन संकेतों को अक्सर हल्के में ले लिया जाता है—चाहे वो मरीज हो या कभी-कभी डॉक्टर भी।

जैसे अगर किसी को लगातार थकावट हो रही है या वजन तेजी से कम हो रहा है, तो इन बातों को हम आम दिनचर्या की वजह मानकर नजरअंदाज कर देते हैं। जब लक्षण लंबे समय तक बने रहते हैं और बिगड़ते जाते हैं, तभी जाकर कैंसर की जांच होती है और तब तक मामला गंभीर हो चुका होता है।

कौन से संकेतों को नजरअंदाज करना भारी पड़ सकता है?

डॉ. तरंग कहते हैं कि शरीर जब कुछ अलग तरह से व्यवहार करने लगे, तो उसे समझना और जांच करवाना बेहद जरूरी है।
कुछ आम लक्षणों पर गौर करना चाहिए, जैसे:

बिना किसी कारण के वजन का घटना

थकान जो आराम के बाद भी ना जाए

कोई गांठ जो बढ़ती जा रही हो

पुराना घाव जो ठीक नहीं हो रहा

लगातार किसी अंग में दर्द रहना

भूख में अचानक बदलाव

इनमें से कोई भी लक्षण अगर लंबे समय से बना हुआ है, तो इसे मामूली मानकर छोड़ना नुकसानदेह हो सकता है।

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