_922628525.png)
Up Kiran, Digital Desk: हाल ही में ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते तनाव और संघर्ष के बीच अमेरिका ने एक बार फिर इजरायल के पक्ष में अपनी समर्थन भावना स्पष्ट कर दी है। इजरायल ने ईरान के संवेदनशील परमाणु और सैन्य केंद्रों पर सटीक हमले किए जिसके बाद ईरान ने भी जवाबी कार्रवाई शुरू की। इस बीच अमेरिका ने इजरायल की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए भारी संसाधन लगाए हैं। रिपोर्टों के अनुसार अमेरिका ने अपनी उन्नत एंटी-मिसाइल रक्षा प्रणाली का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा इस क्षेत्र में तैनात किया है। विशेष रूप से THAAD नामक मिसाइल रक्षा प्रणाली को इजरायल में स्थापित किया गया है ताकि किसी भी संभावित हमले को प्रभावी रूप से टाला जा सके।
यह कोई नई घटना नहीं है कि अमेरिका ने इजरायल के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई हो। इतिहास में कई बार अमेरिका ने इजरायल की सुरक्षा के लिए अपने हितों को जोखिम में डालकर समर्थन दिया है। एक महत्वपूर्ण उदाहरण 1967 का छह दिन का युद्ध है जिसमें इजरायल ने वेस्ट बैंक गाजा पट्टी सिनाई प्रायद्वीप और गोलान हाइट्स पर कब्जा किया। तब भी अमेरिका ने इजरायल का मजबूत साथ दिया भले ही इसके परिणामस्वरूप क्षेत्रीय और वैश्विक ऊर्जा संकट उत्पन्न हुआ था जिसका असर अमेरिका पर भी पड़ा।
यादगार योम किप्पुर युद्ध
इजरायल के कैलेंडर में 'योम किप्पुर' को सबसे पवित्र दिन माना जाता है। 1973 में इसी दिन मिस्र और सीरिया ने अचानक इजरायल पर हमला किया जिससे इजरायल पूरी तरह से तैयार नहीं था। इस संकट के दौरान इजरायल ने तत्काल अमेरिकी मदद की गुहार लगाई और अमेरिका ने भी बिना देर किए युद्ध सामग्री और सैन्य सहायता भेजी। यह संघर्ष ‘योम किप्पुर युद्ध’ के नाम से जाना जाता है जो 6 अक्टूबर से 25 अक्टूबर 1973 तक चला।
शुरुआती दिनों में मिस्र और सीरिया की सेनाओं ने गोलान हाइट्स और सिनाई क्षेत्रों में काफी बढ़त बना ली थी जिससे ऐसा लगा कि वे विजेता होंगे। लेकिन बाद में इजरायल ने कड़ा मुकाबला करते हुए स्थिति को पलट दिया और दमिश्क सहित कई जगहों पर घातक हमले किए। यह सब अमेरिका की सहायता के कारण संभव हो पाया था।
अमेरिका ने झेला भी संकट
इस युद्ध के दौरान अमेरिका ने खुलकर इजरायल का समर्थन किया वहीं सोवियत संघ मिस्र और सीरिया का पक्षधर था। वैश्विक तनाव इतना बढ़ गया था कि परमाणु संघर्ष के कगार तक पहुंच गए थे। हालांकि अंततः एक सीजफायर हुआ। लेकिन इसके बाद अरब देशों ने तेल निर्यात बंद कर दिया जिससे अमेरिका समेत पश्चिमी देशों को ऊर्जा संकट का सामना करना पड़ा।
--Advertisement--