_737041772.jpg)
Up Kiran, Digital Desk: जब हम किसी देश की ताकत की बात करते हैं, तो हमारे दिमाग में सेना, परमाणु हथियार या सोने-चांदी के भंडार का ख्याल आता है। लेकिन भविष्य की असली ताकत इन सब चीजों में नहीं, बल्कि एक ऐसी धातु में छिपी है जिसे हम और आप रोज देखते हैं - तांबा (Copper)।
जी हां, वही तांबा जिससे हमारे घरों में बिजली के तार, बर्तन और पाइप बने होते हैं। आज की दुनिया में यह सिर्फ एक मामूली धातु नहीं, बल्कि 'नया तेल' बन चुका है, और इस खेल में चीन हमसे बहुत, बहुत आगे निकल चुका है।
कॉपर इतना जरूरी क्यों हो गया है: भविष्य की हर बड़ी टेक्नोलॉजी की रीढ़ कॉपर ही है:
इलेक्ट्रिक गाड़ियां (EVs): एक सामान्य पेट्रोल कार के मुकाबले एक इलेक्ट्रिक कार में चार गुना ज्यादा तांबे का इस्तेमाल होता है।
ग्रीन एनर्जी: सोलर पैनल, विंड टरबाइन (पवन चक्की) और बिजली के पूरे इंफ्रास्ट्रक्चर को बनाने के लिए भारी मात्रा में तांबे की जरूरत होती है।
एडवांस टेक्नोलॉजी: हमारे स्मार्टफोन से लेकर दुनिया की हर इलेक्ट्रॉनिक चीज तांबे के बिना अधूरी है।
सीधे शब्दों में कहें तो, जिस देश के पास कॉपर का कंट्रोल होगा, वही देश 21वीं सदी की औद्योगिक क्रांति को लीड करेगा।
इस खेल में चीन क्या कर रहा है: चीन इस सच्चाई को बहुत पहले ही समझ चुका है। उसने आज से 20 साल पहले ही वही रणनीति अपनानी शुरू कर दी थी, जो अमेरिका ने पिछली सदी में तेल को लेकर अपनाई थी - हर हाल में सप्लाई पर कंट्रोल करो।
खदानों पर कब्जा: चीन खुद ज्यादा तांबा नहीं बनाता, लेकिन उसने दुनियाभर में, खासकर अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में, तांबे की खदानों को खरीद लिया है या उनमें हिस्सेदारी ले ली है। आज दुनिया के आधे से ज्यादा कॉपर प्रोडक्शन पर चीन का सीधा या परोक्ष कंट्रोल है।
रणनीतिक भंडार बनाना: वह सिर्फ खदानों पर कब्जा ही नहीं कर रहा, बल्कि अपनी जरूरत से कहीं ज्यादा तांबा खरीदकर उसका एक विशाल 'रणनीतिक भंडार' (Strategic Reserve) बना रहा है। ठीक वैसे ही जैसे देश युद्ध के लिए अनाज और तेल का भंडार रखते हैं।
इसका नतीजा यह है कि आज जब पूरी दुनिया, जिसमें भारत भी शामिल है, को अपनी ग्रोथ के लिए कॉपर की जरूरत है, तो उसकी चाबी चीन के हाथ में है।
और भारत इस रेस में कहां है:अफसोस की बात है कि हम इस रे-स में बहुत पिछड़ गए हैं।
हम आयातक हैं, नियंत्रक नहीं: भारत अपनी जरूरत का बड़ा हिस्सा बाहर से खरीदता (आयात करता) है। हमारे पास न तो अपना कोई बड़ा भंडार है, और न ही हमने चीन की तरह विदेशों में खदानों पर कंट्रोल करने की कोई कोशिश की है।
भविष्य की जरूरतें: 2070 तक 'नेट-जीरो' बनने के हमारे लक्ष्य और इलेक्ट्रिक गाड़ियों को तेजी से अपनाने की हमारी योजना के लिए हमें भारी मात्रा में तांबे की जरूरत पड़ेगी।
अगर हम आज नहीं जागे, तो वह दिन दूर नहीं जब हमें अपनी ऊर्जा और औद्योगिक जरूरतों के लिए चीन के आगे हाथ फैलाना पड़ेगा। और तब चीन इसकी कीमत सिर्फ डॉलर में नहीं, बल्कि अपनी रणनीतिक शर्तों पर वसूलेगा।
तो भारत को अब क्या करना चाहिए: अब सिर्फ बातें करने का समय नहीं है। हमें चीन से सीखना होगा और तुरंत कुछ बड़े कदम उठाने होंगे:
रणनीतिक भंडार बनाना: सरकार को तुरंत दूसरे देशों से तांबा खरीदकर अपना एक बड़ा राष्ट्रीय भंडार बनाना शुरू करना चाहिए।
विदेशों में खदानें खरीदना: सरकारी और प्राइवेट कंपनियों को मिलकर विदेशों में, खासकर अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में, तांबे की खदानों में हिस्सेदारी खरीदने के लिए एक आक्रामक नीति बनानी चाहिए।
रिसाइक्लिंग को बढ़ावा देना: हमें पुराने इलेक्ट्रॉनिक सामान और तारों से तांबा निकालने (रिसाइक्लिंग) की अपनी क्षमता को युद्धस्तर पर बढ़ाना होगा।
हमें यह समझना होगा कि भविष्य की जंगें सिर्फ सीमाओं पर नहीं लड़ी जाएंगी। असली लड़ाई कॉपर जैसी महत्वपूर्ण धातुओं के कंट्रोल को लेकर होगी। अगर हम आत्मनिर्भर बनना चाहते हैं, तो हमें 'नए तेल' यानी कॉपर पर अपना कंट्रोल स्थापित करना ही होगा