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Up Kiran, Digital Desk: अरब के दो प्रमुख देशों, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), के बीच अचानक हुआ संघर्ष न केवल राजनीतिक स्तर पर बल्कि यमन की जनता पर भी गहरा असर डाल रहा है। यह तनाव उस समय बढ़ा जब सऊदी अरब ने यमन के मुकल्ला बंदरगाह पर यूएई के हथियारों से लदे जहाजों पर हमला कर दिया। सऊदी अरब का आरोप था कि ये हथियार अलगाववादी समूहों को मिल सकते थे, जिससे क्षेत्रीय अस्थिरता और बढ़ सकती थी।

हमले की वजह और सऊदी अरब की प्रतिक्रिया

यूएई के जहाजों में भारी मात्रा में हथियार, वाहन और विस्फोटक सामग्री लदी हुई थी, जिसे सऊदी अरब ने अपने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा माना। इस हमले ने यमन के राजनीतिक परिदृश्य को और जटिल बना दिया। सऊदी अरब के अधिकारियों का कहना था कि यह हथियार यमन के दक्षिणी अलगाववादियों को दिए जा सकते थे, जिनका समर्थन यूएई कर रहा था। यह कार्रवाई न केवल सैन्य दृष्टिकोण से, बल्कि मानवता और क्षेत्रीय सुरक्षा के लिहाज से भी गंभीर है।

यूएई का निर्णय: सैनिकों की वापसी

सऊदी अरब के हमले के बाद यूएई ने अपनी सैन्य उपस्थिति को यमन से घटाने का फैसला लिया। यह निर्णय यूएई के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था, क्योंकि पहले उसे यमन में आतंकवाद विरोधी अभियानों के लिए समर्थन प्राप्त था। लेकिन सऊदी अरब के आरोपों के बाद यूएई ने यह साफ किया कि वह अब अपनी सेना को वापस बुलाएगा।